२१२२ २१२२ २
हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से
है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से
जिस्मो दिल हों ज़ख़्मी अब बेशक
रखना खुद को तुम करीने से
ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से
है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से
हुश्न हो या इश्क हो गुमनाम
हो चुके रिश्ते भी झीने से
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
आदरणीय गुमनाम सर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करे. इन दो अशआर के लिए दिल से दाद कुबूल फरमाए -
ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से
है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से
अजय जी खुर्शीद जी हरी प्रकाश जी राजेश जी आप सभी का शुक्रिया राजेश कुमारी जी आपकी सलाह का शुक्रिया
हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से----जाँ निकल भी जा ए सीने से----इसे इस तरह कर लें
ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से-----दिल तक पंहुचता शेर वाह्ह्ह्ह
मक्ता भी बहुत खूब
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने दिली दाद कबूलिये
गुमनाम भाई, बस अब तो गुमनाम ना रहिये
असल नाम ,क्या है भाई , जनाब कुछ तो कहिये !
ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से
है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से
आदरणीय गुमनाम साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |
हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से..............wah sher hua hai ,......aah nikal gayi ...
धन्यवाद गिरिराज जी बागी जी विजय जी बहुत धन्यवाद
है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से --- बढ़िया शे र , वाह ! बहुत बहुत बधाइयाँ , गज़ल के लिये , आ. गुमनाम भाई ।
"वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने … हार्दिक बधाई।"
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