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समुद्र में मछली

समुद्र में मछली

ट्रेन से उतरकर उसने चिट को देखा और बोला –“थैंक्यू भईया |”और फिर हम दोनों पुरानी दिल्ली स्टेशन के विपरीत गेटों की तरफ सरकने लगे |मुझे दफ्तर पहुंचने की जल्दी थी|फिर भी एक बार मैंने पलटकर देखा पर स्टेशन की भीड़ में,दिल्ली के इस महासमुद्र में वो विलुप्त हो चुका था |

दफ्तर पहुंचते ही बॉस ने मुझें मेरे नए टारगेट की लिस्ट थमा दी और मैं एक सधे हुए शिकारी की तरह अपने सम्भावित कलाइन्ट्स के प्रोफाइल पढ़ते हुए निकल पड़ा |

शालनी बंसल पेशे से अध्यापिका हैं |दो साल पहले अनाथालय से एक एक साल की लड़की उन्होंने गोद ली है |बच्ची के लिए शैक्षिक बीमा करवाना चाहती हैं

“माहिया, नोS, डोन्ट मेक प्रैंक |” वो कमरे में चीजों को उठाती-पटकती उस तीन साल की लड़की को समझाती हुई कहती हैं |

“एक लड़की नहीं सम्भलती तुझसेS ! मैंने चैरटी होम नहीं खोल रखा,अगर काम नहीं होता तो बता दे,मैं एजेंसी से दूसरी मैड मंगवा लूंगी |” ड्राइंगरूम के गेट पर खड़ी मटमैले कपड़ों से लिपटी उस 14-15 साल की लड़की पर बिगड़ते हुए वो बोलीं |

“अब जा पानी लेकर आ |”उन्होंने आदेशात्मक मुद्रा में कहा |

_________________________________________________________________________________________________

विजय कपूर के दरवाजे की घंटी बजाई तो –“भोऊ-2 ,भौओ-2 “के मंगल गीत से एक बुल्गारियन डॉग ने वेलकम किया |

हैरी को चुप्प कराते हुए उस 9-10 साल के लड़के ने गेट की जाली से मेरा नाम और काम पूछा और भीतर चला गया |बाद में वो मुझे अपने साथ बैठकघर में ले आया जहाँ मि. कपूर तन्मयता से कोई रेफरेंस पढ़ रहे थे |

“कल चाइल्ड कस्टडी का एक केस है|बस उसी की तैयारी कर रहा हूँ  |”

“वैरी गुड !”मैंने मुस्कुराते हुए धीमे स्वर में कहा |

“बताईये आपकी कम्पनी की कौन सी पाॅलिसी  मेरे आने वाले बच्चे के लिए अच्छी रहेगी |अगर मुझे कुछ हो जाए तो उन्हें कोई दिक्कत ना हो |” उसने बिना भटके सीधी  बात की  |

जब छोटू चाय की ट्रे लेकर आया तो हैरी भी दुम हिलाता हुआ अंदर आ गया और एकटक जीभ निकालकर हमे देखने लगा |

कपूर ने एक काजू कतली उठाई और हैरी के मुँह में डाल दी |

“छोटू तू भी,पार्ले जी का एक छोटा पैक्ट ले लेना |”

“यू ,नोSअ आई एम वैरी कैरिंग एंड रिस्पोंसिबल |” उसने हैरी की पीठ को सहलाते हुए बात को आगे बढ़ाया |

_________________________________________________________________________________________________

कमीशन का प्रलोभन और टारगेट अचीव करने की धुन में सफ़र की थकान हल्की मालूम हो रही थी |मैंने आखिरी टारगेट सुहैल खान का नम्बर मिलाया

“भाईजान, अभी एक केस की तफ्तीश में हूँ |ऐसा करो 2 बजे सदर थाने की पीछे रियाज होटल में मिलो |”

मेरे सामने की कुर्सी पर बैठता हुआ वो बोला –“साले,पिल्ले पैदा करके छोड़ देते हैं और ये हमारी नाक में दम करते हैं |वो जो जुविनाईल हाउस से बच्चे भाग गए हैं |वही केस देख रहा हूँ |”

“पर वहाँ तो बच्चों के साथ - - - - न्यूज में दिखा रहे थे |”मैंने उसकी और जिज्ञासा से देखा |

“बड़े लोग हैं |बड़े शौक हैं |ये तो उन्हें सोचना चाहिए जो इन्हें पैदा करते हैं |”उसने कुछ घृणा और निराशा से कहा |

“अरे तू नया है क्या !खड़ा-खड़ा बात सुन रहा है |माथा घूम गया तो - - - -- जा एक फिश करी और एक प्लेट फिश फ्राई और 15 रोटियाँ लेकर आ |”वहाँ 12-13 साल के एक काले लड़के को देखते हुए खान ने कड़क आवाज़ में कहा |

“तुम भी खाओ |पेमेंट की चिंता मत करो|” प्लेट मेरी तरफ बढ़ाते हुए वो बोला |

“मैं शाकाहारी हूँ !”मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा

“पहले बताते |तो कहीं और मिल लेते |पर जो भी हो भाई, ये मछली हैं बड़ी गज़ब की चीज़ |ये जो बड़ी मछली देख रहे हो ,ये अपनी बिरादरी की छोटी मछलियों को भी खा लेती हैं और बढ़ती जाती हैं|दोनों का अलग ही जायका है| - - - - - -  - - - -  - - - - - -अरे लड़के,पानी ला |”

_________________________________________________________________________________________________

­­­­­­­­­­­­­रात को जब घर लौटा तो एक्वेरियम में थोड़ा सा चारा डाल दिया |मछलियाँ फुदकती हुई चारा खाने लगीं |

बिस्तर पर लेटा तो नींद नदारद थी |खान की छोटी मछली वाली बात और आत्म-विश्वास से भरा उस असमिया  लड़के का चित्र दिमाग में घूमने लगा |जिसका नाम तक पूछने का ध्यान मुझे ना रहा |

लखनऊ स्टेशन पर जब 7 नम्बर की रिजर्व बोगी में सवार हुआ तो सामने की सबसे ऊपर वाली कोच पर वो दूसरी तरफ मुँह किए लेटा हुआ था |7-8 साल का गौर वर्ण ,3-3.25 फीट का कद ,फरवरी की सर्दी में भी कपड़े के नाम पर केवल निक्कर और घिसा हुआ टी-शर्ट और सिराहने प्लास्टिक का एक झोला दबाए हुए वो अपने शून्य में खोया हुआ था |सीट पर ही एक जोड़ी घिसी हुई चप्पल रखी थी |एक बार उसने मेरी तरफ देखा और मुँह फेर लिया |

गाड़ी खुलने पर मैंने अपना खाने का पैक्ट खोला तो उसने दोबारा सामने की तरफ मुँह किया |एक बार मेरी तरफ और फिर खाने की तरफ देखा और फिर से दूसरी तरफ पलट गया |वो कोच पर बार-बार करवट ले रहा था |मैंने आसपास की खाली और भरी सीटों को देखा और अनुमान लगाया ये अकेला है |शायद घर से रूठ कर निकला हो |

“पूड़ी-सब्ज़ी खाओगे ?”

 मेरे इस कथन पर वो पलटकर मेरी तरफ टुकुर-टुकुर देखने लगा और थोड़ी देर बाद शंका से बोला –“तुम बदमाश हो |पूड़ी-सब्ज़ी खिलाकर मुझे सुला दोगे और फिर पकड़कर भीख मंगवाओगे|नानी ने कहा था कि बदमाश लोगों से बचकर रहना  |”

“बदमाश - - - - मैं !” मैंने मुस्कुराते हुए पूड़ी-सब्ज़ी का टुकड़ा मुँह में ठूंसते हुए पूछा |

“और नहीं तो क्या ?मैंने तुम्हारा कोई काम भी नहीं किया |नानी कहती हैं कि अच्छे आदमी से काम माँगना और वे तुम्हें रोटी भी देंगे |” उसने पूड़ी की तरफ देखते हुए कहा |

मैं चुपचाप पूड़ी-सब्ज़ी खाता रहा |

“मुझे वर्दी वाले अंकल से चाय-बिस्कुट दिला दो |” कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए वो बोला|

मैं समझ गया कि यहाँ उसका आशय कैंटीन के कर्मचारियों से था |

चाय में बिस्कुट डुबाते हुए वो बोला -"मै ब्होअत पीछे वाला डिब्बा में मालदा से बैठा था |एक काला कोट वाला आया और टिकट मांगने लगा |मैं चुप्प रहा तो एक पुलिसवाले को भी ले आया ,दोनों कहता था कि टिकट नहीं तो अगले स्टेशन पर उतर जा वर्ना जेल में डाल देगा |जब वो लोग दूसरी तरफ गया मै भाग कर इहाँ आ गया |साला बदमाश लोग!"

"अरे वो लोग तो अपनी डयूटी कर रहे थे |गाली देना गंदी बात होती है |बैड मैनर |"मैंने उसे समझाने के लहजे से कहा |

तुम नही जानता भईया |ये वर्दी वाला वेरी बैड होता है |हमारे आसाम में गरीब लोगों को सताता है |इसीलिए उल्फ़ा लोग इन वर्दी वालों को गोली मार देता है |उल्फ़ा गरीबों का फ्रेंड होता है |"वो मासूमियत से अपना अनुभव व्यक्त कर रहा था |

"पर क्या किसी की जान लेना अच्छी बात होती है ?"मैंने उसे समझाते हुए पूछा |

"मै  बुक में पढ़ा था कि वायलेंस बुरी बात है |बट अगर कोई आपको तंग करे तो उसे क्यों ना मारो |"उसने  तर्क दिया |

"तुमने पढ़ाई कहाँ तक की है ?"मैंने पूछा 

"मैं फोर्थ में पढ़ रहा था |वहाँ हमें हिंदी इंग्लिस और असमिया पढ़ाते थे |लंच में खाना भी देते थे |"खाने के नाम से उसके चेहरे की चमक बढ़ जाती है |

“तुम अकेले दिल्ली जा रहे हो |तुम्हारी नानी ने तुम्हें रोका नहीं ?”मैंने अपनी जिज्ञासा जारी रखी 

"नहीं ,नानी ने ही मामा से कहकर मुझे ट्रेन में बिठवा दिया |"

“नानी रोई नहीं ?”

“रोई ,-  - -पर, वो क्या करे ?वो बूढी हो गई है |आँख से नहीं दिखता |काम कर नहीं सकती |मामा-मामी सिर्फ अपने बच्चों को रोटी खिलाता है |नानी ने मुझे कहा कि दिल्ली चले जाओ |दिल्ली में बड़े आदमी रहते हैं |वहाँ काम करने पर पैसा और रोटी दोनों मिल जाएगा |”

“दिल्ली में कहाँ रहोगे ?”

“जहाँ काम मिल जाएगा |वैसे नानी कहती है कि हमारे असम का कई लोग दिल्ली में रहता है |उनमें से कोई तो काम दे ही देगा |”

“और अगर काम ना मिला तो ?”

“अनाथालय चला जाऊंगा |मामा कहता था कि काम ना मिले तो अनाथालय चले जाना |वहाँ बच्चे लोगों को मुफ्त में रखा जाता है |अच्छा खाना ,कपड़ा और पढ़ाई करने को मिलता है और कई बार बड़ा आदमी लोग बच्चा लोगों को अपने घर ले जाता है और वो बच्चा भी बड़ा होकर बड़ा आदमी हो जाता है |”

“तुम्हें अपने माता-पिता का ध्यान है ?”

“नानी कहती है कि जब मैं बहुत छोटा था तो डैडी को खाँसने की बीमारी हो गई |पहले डैडी मरा और बाद में मम्मी |दोनों लोग पहले दिल्ली में ही रहता था |” उसने सपाट भाव से कहा |

“तुम्हारा तो मम्मी-पापा है ना ?”उसने मुझसे पूछ लिया |

“हाँ |”

“फिर तो तुम बहोत लक्की है |”उसने ध्यान से मुझे देखते हर कहा |

“भईया आप मुझे काम दे सकता है |मुझे पैसे मत देना |बस दोनों टाईम खाने को दे देना |”उसने बहुत आशा से मुझे देखा |

मैंने धीमे से कहा कि मैं उसे काम नहीं दे सकता |यद्यपि अपने बीमार माता-पिता की देखरेख के लिए मुझे किसी अटेंडेंट की जरूरत थी |पर ऐसे तेज़-तरार्र असमिया  लड़के पर आँख मूंद कर भरोसा करना और बाल-क्ष्रम कानून के विरुद्ध जाने का दम मुझमें ना था |

“तो कहीं काम दिला दो |” उसने फिर आग्रह किया| पर मैं चुप्प रहा |

मुझे चुप्प देख वो फिर बोला –“अच्छा, अनाथालय पहुँचा दो |”

मैंने अपने मोबाईल मैं पुरानी दिल्ली के एक अनाथालय का पता ढूंढा और उसे एक चिट पर लिख लिया |इसके बाद मैं मोबाइल पर एक वीडियों देखने लगा |

मुझे देखकर वो बोला कि जब वो बड़ा हो जाएगा तो खूब सारे पैसे जमा करेगा और मेरी तरह अच्छे कपड़े और फ़ोन खरीदेगा |उसकी  मासूमियत और आत्मविश्वास पर  मैं मुस्कुरा दिया |पर भीतरही भीतर एक कुलबुलाहट महसूस हुई |भय हुआ कि जब ये छोटा बालक जीवन के क्रूर यथार्थ का सामना करेगा तो इसकी क्या दशा होगी !पता नहीं नियति ने इसके आगे के लिए क्या निर्धारित किया है ?इन विचारों से जूझते हुए जाने कब आँख लगी मालूम ही नहीं चला|

सुबह जब आँख खुली तो गाड़ी स्टेशन पर लग चुकी थी|वो अभी भी सोया हुआ था |मैंने उसे हिलाते हुए जगाया -"उठो दिल्ली आ गई |" 

|उसने मुस्कारते हुए असमंजस से आँख रगड़ी और बैठ गया |उतरने से पहले मैंने उसे रात में लिखी हुई चिट और 50 रुपए दिए और समझाया कि स्टेशन से उतरकर किसी से कह देना कि तुम्हें इस पते पे जाना है |हो सके तो किसी पुलिसवाले से मदद मांगना |

मुझे चाईल्ड-हेल्पलाइन का नम्बर याद था |पर मैं किसी फजीहत में नहीं पड़ना चाहता था |मेरे सामने टारगेट था |छोटी मछली से बड़ी मछली बनने का टारगेट |

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 

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Comment by somesh kumar on February 19, 2015 at 10:19am

रचना को अनुमोदन देने के लिए हरिप्रकाश भाई जी ,विजयशंकर सर एवं आ. गोपाल नारायण सर का आभार |स्वीकृति देने हेतु आ.सम्पादक जी का भी तहे दिल से शुक्रिया |पर कहानी पर समीक्षात्मक दृष्टी की अभी प्रतीक्षा है |

Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 8:59am

सोमेश भाई, सुन्दर रचना.....“भोऊ-2 ,भौओ-2 “के मंगल गीत से एक बुल्गारियन डॉग ने वेलकम किया"...हा हा हा ....हार्दिक बधाई आपको !

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 8:22pm
मछलियों के बीच जाएंगे तो मात्स्य न्याय ही पाएंगे।
सुन्दर कथाएं, बधाई आदरणीय सोमेश जी, सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 18, 2015 at 1:51pm

मित्र

लगता है मेरी नसीहत काम कर गयी - आप[का लेखन धीरे पटरी  पर आ रहा है i  पात्र  आपस में अधिक संवाद करे इसका ध्यान सदैव रखे i मेरी शुभ कामनाएं

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