दशाश्वमेध घाट पर
कुछ उत्तर आधुनिक भारतीय
कर रहे थे स्नान
शैम्पू और विदेशी साबुन के साथ
दूर –दूर तक फैलकर झाग
धो रहा था अमृत का मैल
गंगा ने उझक कर देखा
फिर झुका लिया अपना माथ
साक्षी तो तुम भी हो
काशी विश्वनाथ !
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
गंगा ने उझक कर देखा
फिर झुका लिया अपना माथ
साक्षी तो तुम भी हो
काशी विश्वनाथ !
बहुत ही सुंदर। .... एक दम सटीक कटाक्ष .... काश इसे देखकर न केवल गंगा बल्कि हर श्रद्धालु का माथ झुक जाए … हर किसकी को सबक देती इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी।
गंगा सीरिज की एक और बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर.... हृदय से बधाई प्रेषित. इस श्रेणी की आपकी गंभीर रचनाएँ पढ़कर मुग्ध हो जाता हूँ. बड़ी गभीरता से कटाक्ष किया है आपने. ... कमाल का प्रभाव छोड़ रही है ये पंक्ति...
साक्षी तो तुम भी हो
काशी विश्वनाथ !
अच्छा कटाक्ष है, गंगा तो नहाने आये पर उसकी परंपरा को न निभा पाये. बधाई
सुन्दर रचना , एक छोटा सा करंट , हार्दिक बधाई आदरणीय डॉक्टर गोपाल नारायण सर ! सादर
/गंगा ने उझक कर देखा
फिर झुका लिया अपना माथ//
साक्षी तो तुम भी हो
काशी विश्वनाथ !// ..वाह
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