For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घास उगने लगी है मेरी कब्र पर

212 212 212 212
---------------------------------------
जिन्दगी थी बहुत ही सुहानी मेरी
मौज मस्ती कभी थी निशानी मेरी
------
एक ज़लसा हुआ था मेरे गाँव में
मिल गयी उसमें परियों की रानी मेरी
------
सिलसिला चल पडा फिर मुलाकात का
मुझको लगने लगी जिन्दगानी मेरी
------
बात अबकी नहीं है मेरे दोस्तो
ये कहानी बहुत ही पुरानी मेरी
------
एक साज़िश रची थी रक़ीबों ने फिर
और साज़िश में शामिल दिवानी मेरी
------
मैं तो मरने लगा था मेरी जान पर
ये हकीकत भी उसने न जानी मेरी
------
एक बारात आई मेरे गाँव में
हो गयी जिन्दगी पानी-पानी मेरी
-------
घास उगने लगी है मेरी कब्र पर
दास्तां बन चुकी है कहानी मेरी 
 

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 679

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:38am

एक बारात आई मेरे गाँव में
हो गयी जिन्दगी पानी-पानी मेरी

आदरणीय उमेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 22, 2015 at 3:41pm

ग़ज़ब ! बहुत खूब ! आदरणीय उमेश भाई.

इस शेर को ऐसा कुछ करें -

घास उगने लगी है मेरी कब्र पर
सो रही है यहाँ हर कहानी मेरी...

 

वैसे ऐसा करना किसी अन्यथा दवाब का कारण नहीं समझना चाहिये.

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 22, 2015 at 3:39pm

आदरणीय उमेश भाई जी ग़ज़ल का वज्न अवश्य लिख दे निवेदन है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 22, 2015 at 3:23pm

वाह वाह.... आदरणीय उमेश भाई जी, बेहतरीन, उम्दा और कमाल की ग़ज़ल हुई है, मंच पर पहली बार कोई मुसल्सल ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ. आपने पूरी दास्ताँ इतनी नजाकत से कही है कि बस मुग्ध हो गया हूँ. हरेक अशआर कमाल हुआ है. हरेक अशआर का स्वतंत्र प्रभाव चकित करता है कि ये अशआर एक मुसल्सल ग़ज़ल का है. दिल से दाद कुबूल कीजिये. कोई शेर कोट नहीं कर रहा हूँ क्योकि सभी शेर एक से बढ़कर एक है. ग़ज़ल की लय इतनी मधुर है कि बस शब्द कम पढ़ पाहे है तारीफ के लिए. बस दिल से आभार और धन्यवाद इतनी सुन्दर ग़ज़ल से रु-ब-रु कराने के लिए और मुसल्सल ग़ज़ल कहने के लिए मुझे प्रेरित करने के लिए. इस ग़ज़ल पर सैकड़ों गज़लें कुर्बान कर दूं. बधाई और कलम को नमन.

Comment by umesh katara on February 22, 2015 at 12:51pm

Dr. Vijai Shanker जी आभार

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 11:51am
सुन्दर , बधाई,आदरणीय उमेश कटारा जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service