सीप में बंद मोती .....
दूर उस क्षितिज पर
रोज इक सुबह होती है
रोज सागर की सूरज से
जीवन के आदि और अंत की बात होती है
जब थक जाता है सूरज
तो सागर के सीने पर
अपना सर रख देता है
और रख देता है
अपने दिन भर के
सफ़र की थकान को
अपने हर सांसारिक
अरमान को
बिखेर देता है
अपनी सुनहरी किरणों की
अद्वितीय छटा को
सागर की शांत लहरों पर
फिर अपने अस्तित्व को
धीरे-धीरे निशा में बदलती
सुरमई सांझ के आलिंगन में
विलीन कर क्षितिज में ओझल हो जाता है
जीवन शांत हो जाता है
क्या उदय सत्य है
या अस्त सत्य है
ये आभास है
या सत्य का विरोधाभास है
न ये तृप्ति है न ये प्यास है
क्या है आखिर
इक अंकुर में जीवन प्रभात है
तो इक सांझ में निराशा का वास है
सागर के गर्भ में जीवित
असंख्य सीपियों की तरह
जीवन के गर्भ में भी असंख्य प्रश्न
अपने उत्तर के लिए भटकते हैं
और उत्तर बस
सीप में बंद मोती की तरह
उस नूर की मुट्ठी में बंद हैं
जिसके हम सब बन्दे कहलाते हैं
जिसे हम सब
ईश्वर,अल्लाह,ईसा मसीह,वाहे गुरु कहते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपके द्वारा रचना की चयनित पंक्तियों पर आपकी स्नेहाशीष से लेखन सफल हुआ ,आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय ,निर्मल नदीम जी रचना पर आपकी दाद की पुष्प वर्षा का हार्दिक आभार।
आदरणीय कृष्णा मिश्रा 'जान 'गोरखपुरी जी रचना पर आपकी स्नेहमयी प्रशंसा का हार्दिक आभार।
वाह !!क्या अनमोल संदेश दिया है आपने आ.सुशील जी ,,,,,आपको इस सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई |
क्या उदय सत्य है
या अस्त सत्य है
ये आभास है
या सत्य का विरोधाभास है
न ये तृप्ति है न ये प्यास है
क्या है आखिर
अपने उत्तर के लिए भटकते हैं
और उत्तर बस
सीप में बंद मोती की तरह
उस नूर की मुट्ठी में बंद हैं
जिसके हम सब बन्दे कहलाते हैं
जिसे हम सब
ईश्वर,अल्लाह,ईसा मसीह,वाहे गुरु कहते हैं - सार गर्भित रचना के ये पंक्तियाँ ही प्रश्न और जिज्ञासा शांत कर रही है | बहुत खूब
आ 0 सरना जी
बहुत डूबकर लिखा आपने निम्न पंक्तियों पर हृदय निसार है i सादर i
और उत्तर बस
सीप में बंद मोती की तरह
उस नूर की मुट्ठी में बंद हैं
जिसके हम सब बन्दे कहलाते हैं
atisundar kavita hai sir.
bahut achchhi hai. dili daad hazir hai.
क्या उदय सत्य है
या अस्त सत्य है
ये आभास है
या सत्य का विरोधाभास है
न ये तृप्ति है न ये प्यास है
क्या है आखिर
इक अंकुर में जीवन प्रभात है??
क्या बात है...बहुत खूब..आदरणीय सुशील जी बधाई स्वीकारें!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online