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उलझी हुयी प्रेमकहानी

मैं एक कवि हूँ 
मुझे प्रेम है 
पहाडों से 
नदी से
सागर में उठती हुयी लहरों से
गिरते हुये झरनों से
सुन्दर सुन्दर फूलों 
की महक से
मीठी मीठी 
पंछियों की चहक से
मैं एक कवि हूँ 
मुझे प्रेम है 
बंजड हुये उस पेड से
जिसने कभी छाया दी थी 
फल दिये 
मुझे प्रेम है
उन तेज नुकीले काँटे से
जिसने खुद को सुखाकर 
फूल को खिलाया 
मुझे जितना सुख से प्रेम है 
उतना ही प्रेम दुख से है
तुम कहती हो 
मैं प्रेमी नहीं हो सकता 
क्योंकि मैं कवि हूँ
ये कैसी व्याख्या है 
तुम्हारी प्रेम की
एक कवि जो प्रकृति की 
बनायी हुयी हरेक रचना में 
प्रेम की तलाश करता है
प्रकृति की हर रचना से
प्रेम करता है
वो प्रेमी नहीं हो सकता है
बडी ही उलझी हुयी है
तुम्हारी प्रेम की परिभाषा
या फिर
उलझी हुयी है मेरी प्रेम कहानी

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 624

Comment

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Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 10:16pm

आदरणीय  khursheed khairadi जी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 8:19pm

मैं एक कवि हूँ 
मुझे प्रेम है 
बंजड हुये उस पेड से
जिसने कभी छाया दी थी 
फल दिये 
मुझे प्रेम है 
उन तेज नुकीले काँटे से
जिसने खुद को सुखाकर 
फूल को खिलाया 

आदरणीय उमेश जी बहुत सुन्दर भाव है |सादर अभिनन्दन |

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 5:52pm

गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत शु्क्रिया आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 4:42pm

बहुत सुन्दर !! आदरणीय उमेश भाई , बधाई आपको रचना के लिये ॥

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 3:54pm

जितेन्द्र पस्टारिया जी बहुत बहुत शु्क्रिया आपका

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 1, 2015 at 2:17pm

बहुत सुंदर लिखा. उम्दा भाव, बधाई आदरणीय उमेश जी

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 1:26pm

somesh kumar जी बहुत बहुत शु्क्रिया आपका

Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:46am

तुम कहती हो 
मैं प्रेमी नहीं हो सकता 
क्योंकि मैं कवि हूँ
ये कैसी व्याख्या है 
तुम्हारी प्रेम की
एक कवि जो प्रकृति की 
बनायी हुयी हरेक रचना में 
प्रेम की तलाश करता है
प्रकृति की हर रचना से 
प्रेम करता है 
वो प्रेमी नहीं हो सकता है
बडी ही उलझी हुयी है 
तुम्हारी प्रेम की परिभाषा 
या फिर 
उलझी हुयी है मेरी प्रेम कहानी

कितने खुबसुरत और सुंदर भावरंजित है इन पंक्तियों में शायद हर उस प्रेमी का सत्य जो एक कवि भी रहे हों |बधाई नही गले लगाने का मन है इन भावों पर |

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 8:43am

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:29am
आदरणीय उमेश जी बड़ी सुन्दर कविता हुई है बधाई स्वीकार करे।

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