For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मदिरा सवैय्या (7 भगण +गुरु )  कुल वर्ण 22

 

चेतन-जंगम के उर में  अविराम  सुधा सरसावत है

रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल  पीर बढ़ावत है

बालक वृद्ध युवा सबके  यह अंतस हूक जगावत है

पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है

 

सुमुखी सवैय्या (7 जगण +लघु+गुरु )   कुल वर्ण 23

 

मरोर उठी  वपु में  जब से यह लक्षण  भेद बताय गयी

सयान सबै  सनकारि उठे तब भावज भी  समुझाय गयी

हुयी अब  बावरि  वात अनंग अनीक अली नियराय गयी

मथै मन मन्मथ वेगि सखी सु सुहावनि सी रुत आय गयी

 

दुर्मिल सवैय्या ( 8 सगण )       कुल वर्ण 24

 

हुरियार चले सब चंग बजावत नाचत–गावत भंग पिये

मदमस्त सबै लहराय रहे कछु धावत है मिरदंग लिये

कछु पंकज-लोलुप घूम रहे निज लोचन आतुर भृंग किये

अब खेल हमें लगता सब है वह जो हमने बहुरंग जिये

 

किरीट सवैय्या (8 भगण )            कुल वर्ण 24

 

देवर खेलन होरि चले कर रंग लिये घट में मन भावन

भावज का पट लाल करूं मन में यह भाव लिये अति पावन

बादल दूं बरसा अपने घर रंग महा रस  का मधु सावन

भावज ने पकडे  तब कान लगी घर आँगन नाच नचावन

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 977

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:59pm

आ० वामनकर जी

आपके स्नेह से अभिभूत हूँ i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:58pm

प्रिय सोमेश

आपका बहुत बहुत आभार i पर प्रिय मैंने कोई आडिओ या वीडिओ पोस्ट नहीं किया हैं  i सप्रेम i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:55pm

आ 0 हरि प्रकाश जी

आपके स्नेह का आभार i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:55pm

आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी

आपका सप्रेम आभार i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:53pm

प्रिय निर्मल नदीम जी

आज के दौर में भी मै छान्दसिक रचनाये करता हूँ i सस्नेह i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2015 at 11:48pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी आपने तो सवैयों की बाढ़ ला दी है !!
सवैये भी क्या मन एक्दम से फागुन-फागुन हो गया है. चार तरह के सवैया-छन्दों से फागुन को समेटने का प्रयास मन प्रसन्न कर रहा है. सुमुखी सवैया की कहन तो बार-बार पढ़ने को उकसा रही है ! दृश्य पर क्या ही महीन भाव अठखेलियाँ कर रहे हैं !
आदरणीय, सवैयों पर प्रयास करने वाले कम ही रचनाकार हैं, अतः इस प्रस्तुति को हृदय से सम्मान दे रहा हूँ.
इस छान्दसिक प्रयास के लिए आपको बार-बार बधाइयाँ.

रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल  पीर बढ़ावत है............ रंग भरे हर जीवन के हिय आकुल पीर बढ़ावत है
पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है.............. पावन है मन-भावन है जग, फागुन की ऋतु आवत है

भावज का पट लाल करूं मन में यह भाव लिये अति पावन....... यह भाव पावन ? .. ;-))

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 10:50pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर सशक्त रचनायें हैं अलग अलग सवैये के रूप में आपने होली के विविध रूपों को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है बहुत बहुत बधाई आपको।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 8:29pm

आदरणीय बड़े भाई , मै क्या तारीफ करूँ , बस पढ के मगन , मुग्ध हूँ । आदरणीय सोमेश भाई जी के कहे का मै  भी अनुमोदन कर रहा हूँ , छंद पाठ का आडियो संभव हो तो पोस्ट अवश्य करें , सुन के और आनन्द आयेगा ॥ आपको इन छ्न्दों के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 8:28pm

मरोर उठी  वपु में  जब से यह लक्षण  भेद बताय गयी

सयान सबै  सनकारि उठे तब भावज भी  समुझाय गयी

हुयी अब  बावरि  वात अनंग अनीक अली नियराय गयी

मथै मन मन्मथ वेगि सखी सु सुहावनि सी रुत आय गयी

 आदरणीय गोपालनारायण सर ,सवैयों से परिचय और वो भी आपके सरस छंदों के माध्यम से ,save करके अपने संग्रह में लेने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हूं (नेट की उत्कृष्ट रचनाओं की अपनी फाइल )|इतने सरस भावपूर्ण और श्लील और रंगीले सवैयों के लिए आपको बहुत बहुत बधाई |सादर अभिनन्दन |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2015 at 7:17pm

फाल्गुन के सुंदर और मन भावन सवैयें पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया और होली की रंगत का अहसास होने लगा | बहुत बहुत बधाई डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service