बहर-
2122 1212 22
खुशनुमा ये सफ़र है क्या कहिये
साथ मेरे वो गर है क्या कहिये
आ गई जान पर है क्या कहिये
चाक मेरा जिगर है क्या कहिये
इश्क में जीत कुछ नहीं होती
हार का फिर भी डर है क्या कहिए
लो गई जान मेरी उल्फत में
सांस अब मुख्तसर है क्या कहिये
छांव मिलती नहीं है दूर तलक
काट डाला शज़र है क्या कहिये
साथ अच्छा है हाल अच्छा है
दिल अकेला मगर है क्या कहिये
इश्क धोखा है लाख समझाया ,
दिल ही गुस्ताख़ गर है क्या कहिये
झील में अक्स देख कर मेरा
कौन आता इधर है क्या कहिये
रात है या बरात शबनम की
भीग कर सोया घर है क्या कहिये
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
गज़ल पंसद करने के लिए आपका हृदय से आभार महर्षि जी
हौसला अफजा़ई के लिए दिल से शुक्रिया शिज्जू जी ...
"आसमानी रंगो का मेला है" इस मिसरे की तक्ती गलत है... ध्यान दिलाने के लिए आभार
इसके जगह पर
साथ अच्छा है हाल अच्छा है
दिल अकेला मगर है क्या कहिये ... कैसा रहेगा?
गज़ल पंसद करने के लिए आपका हृदय से आभार आ. विजय शंकर जी...सादर
गज़ल पंसद करने के लिए आपका हृदय से आभार आ. गणेश बागी जी
गज़ल पंसद करने के लिए आपका हृदय से आभार आ. गोपाल नाराय़ण जी..सादर
बड़े ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल कीजिए
आदरणीया महिमा जी, बहुत सुन्दर गजल है ,हार्दिक बधाई आपको !सादर
लो गई जान मेरी उल्फत में
सांस अब मुख्तसर है क्या कहिये
छांव मिलती नहीं है दूर तलक
काट डाला शज़र है क्या कहिये......वाह !
इश्क में जीत कुछ नहीं होती
हार का फिर भी डर है क्या कहिए
लो गई जान मेरी उल्फत में
सांस अब मुख्तसर है क्या कहिये -- बहुत खूब आदरणीया महिमा जी , बढ़िया गज़ल के लिये बधाइयाँ ॥
आसमानी रंगो का मेला है -- आदरणीया , ये मिसरा बेबहर हो रहा है ॥
इश्क में जीत कुछ नहीं होती
हार का फिर भी डर है क्या कहिए
लो गई जान मेरी उल्फत में
सांस अब मुख्तसर है क्या कहिये
छांव मिलती नहीं है दूर तलक
काट डाला शज़र है क्या कहिये
आदरणीया महिमाश्री जी ,उम्दा गजल हुई है |सभी अशआर खुबसूरत हैं .... विशेष दाद कबूल फरमावें .....
झील में अक्स देख कर मेरा
कौन आता इधर है क्या कहिये
सादर
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