For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अचानक घिर आये बादलों को देखकर बल्लू घबरा गया , हवाएँ भी तेज हो गयी थीं | मार्च का महीना , गेहूं की फसल अपनी जवानी पर थी , बालियां निकल आई थीं और कुछ दिनों में इनके पकने की शुरुवात होने वाली थी |
कल खेत से लौटते हुए मन कितना हर्षित था उसका , इस बार तो बैंक का क़र्ज़ चुका ही देगा | पिछले हफ्ते ही नोटिस आया था क़िस्त जमा करने के लिए और उसने उसे बेफिक्री से फेंक दिया था | एक गाय भी लेनी थी उसे इस बार , फिर तो दूध से भी थोड़ी आमदनी बढ़ जाएगी | रात में उसने पत्नी को प्यार से बाँहों में भींच लिया , वो भी मुस्कुरा उठी थी |
देखते ही देखते मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी , हवाएँ भी रौद्र रूप धारण कर चुकी थीं | बिल्लू गिरते पड़ते खेत की ओर भागा, कल तक दूर से नज़र आने वाली हरियाली आज जमींदोज हो गयी थी | उसको देख मुस्कुराने वाली फसल अब उससे मुंह मोड़ कर ज़मीन से इश्क़ फ़रमा रही थी , उसके सपने तेज हवाओं ने अपने साथ उड़ा दिए थे |
पर इस सबसे दूर शहरों में लोगों को मौसम सुहावना लगने लगा था |

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2015 at 11:49am

इस लघुकथा के लिए..बहुत बहुत बधाई!!....जमीन से जुडी हुई,और सामयिक प्रस्तुति पर आपको अभिनन्दन!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 4, 2015 at 11:37am

बहुत ही भावपूर्ण लघुकथा , आदरणीय विनय जी. आपकी लघुकथा एक ऐसी सच पर कसी हुई है जिसे मैं पूर्ण रूप से स्वीकारता हूँ,. केवल एक आशा के भरोसे बो दिए गए बीज पर निर्भर, कई उम्मीदें जिनमे माता-पिता की सेवायें ,पत्नी की खुशियाँ, बच्चों का भविष्य और कुछ भविष्य को सुरक्षित और संजोने के उपाय. बस! इसके बाद चार-पांच माह तक उन बीजों को धरती के गर्भ में डालकर कई समस्याओं से जूझते हुए फलदार पौधे बन जाने का सफ़र सिर्फ आशाओं पर ही केन्द्रित रहता है. जब फसल सुनहरी पकी हुई खड़ी रहती तो हमारे यहाँ उसे परोसी हुई थाली कहा जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि जब तक फसल निकालकर घर में  न भरा जाए तब अपनी नहीं है. आशाओं और निराशाओं के बीच काफी कुछ देखने को मिलता है. लेकिन हर जगह समझोते को ही स्वीकारा जाता है. आवारा या खुद के जानवर थोड़ी फसल खा भी लेते है, फसल कटाई व् निकालते समय खेत और खले में झड जाती है जिसे पूरी तरह से एकत्रित नही किया जा सकता, तब यही कहकर संतुष्टि कि वो गौ ,धरती और आँगन का हिस्सा था जो उन्होंने रख लिया. इन आशाओं के पश्चात जब आपदायें इन्हें छीन लेती है तो दो-तीन वर्ष तक वोही मंजर ,आँखों के सामने बना रहता है, और जुट रहते है एक आशाओं के पूर्ण होने वाले वर्ष के लिए.

 आपको लघुकथा पर बहुत-बहुत बधाई व् शुभकामनायें

Comment by विनय कुमार on March 3, 2015 at 9:45pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ..

Comment by विनय कुमार on March 3, 2015 at 9:44pm

बिलकुल सच कहा आपने , बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी..

Comment by विनय कुमार on March 3, 2015 at 9:44pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी , टाइपिंग त्रुटि है वो , नाम बल्लू ही है ..

Comment by विनय कुमार on March 3, 2015 at 9:42pm

बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय सोमेश कुमार जी , आपकी बात सोलहो आना सच है | शहर में भी एक तबका रहता है जिसका जुड़ाव अभी भी गांव से है क्योंकि उनकी जमीने हैं वहां | बाकी लोगो के लिए तो ये मौसम पिकनिक मनाने के जैसा होता है ..

Comment by विनय कुमार on March 3, 2015 at 9:39pm

बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव ji..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 9:09pm

सामयिक और प्रासंगिक सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी

Comment by Hari Prakash Dubey on March 3, 2015 at 8:28pm

भाई  विनय जी, इसी को कहतें हैं ,केहू के मरे भंईस केहू बजावे खपरी , सुन्दर और सामयिक लघुकथा पर बधाई ! 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 3, 2015 at 8:13pm

वाह सर जी आपके द्वारा बहुत अच्छी लघु कथाएं प्रस्तुत की जाती है ........ पर यहाँ पर बिल्लू और बबलू एक ही हैं या अलग अलग ...............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
15 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service