तुझे वो याद करके दिल जलाती है चले आओ
तड़प कर गीत वो गम के सुनाती है चले आओ
बुलाती हैं तुझे हरदम तुम्हारे गॉंव की गलियॉं
तुम्हें वो याद करके अश्क बहाती है चले आओ
न भूलेगीं कभी गलियॉं शरारत याद है तेरी
कसम तुमको शरारत की दिलाती है चले आओ
जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्हारी मॉं
तुम्हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ
न सुख मिलता यहॉं शहरी न बिजली है न बत्ती है
मगर खुद चॉंदनी रस्ता दिखाती है चले आओ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अखंड जी
उस्तादों की इस्लाह के बाद गजल और् निखरी है i सादर i
आदरणीय अखंड गहमरी जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है
जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्हारी मॉं
तुम्हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ....वाह , बहुत - बहुत बधाई आपको ! सादर
जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्हारी मॉं
तुम्हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ
बहुत ही मनमोहक और सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई
क्या बात है...दिल बाग़ बाग़ हो गया !
न भूलेगीं कभी गलियॉं शरारत याद है तेरी
कसम तुमको शरारत की दिलाती है चले आओ
बहुत सुन्दर !!
जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्हारी मॉं
तुम्हारा नाम ले ले वो बुलाती है चले आओ
लाजवाब!!
न सुख मिलता यहॉं शहरी न बिजली है न बत्ती है
मगर खुद चॉंदनी रस्ता दिखाती है चले आओ
बहुत ख़ूब! चॉंदनी रस्ता दिखाती है चले आओ!! क्या तरन्नुम है!
बहुत बहुत बधाई!! सादर! आज का दिन खुशनुमा बना दिया आपने!
उम्दा गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद .... |
वाह वाह वाह आदरणीय अखंड जी बहुत ही मनमोहक और सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई निवेदित है
सभी अशआर मुग्ध कर रहे है, इन्हें गुनगुनाकर झूम गया हूँ
जहाँ गुनगुनाने में ज़रा सी खलल का अहसास हो रहा है यानी जहाँ लयात्मकता बाधित लगी उसे इंगित कर रहा हूँ -
बुलाती हैं तुझे हरदम तुम्हारे गॉंव की गलियॉं
तुम्हें वो याद कर आँसू बहाती है चले आओ (करके अश्क के स्थान पर)
जले है हाथ फिर भी सेकती रोटी तुम्हारी मॉं
तुम्हारा नाम ले लेकर बुलाती है चले आओ (वो के स्थान पर )
न सुख मिलता यहॉं शहरी न बिजली है न बत्ती है......... ( बिजली और बत्ती एक ही बात ध्वन्यार्थ हो रही है यदि एक नया शब्द आ जाए तो और भी अच्छा लगेगा.)
मगर खुद चॉंदनी रस्ता दिखाती है चले आओ...... बहुत उम्दा अशआर
झूम कर गुनगुनाने वाली सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु हार्दिक आभार
बुलाती हैं तुझे हरदम तुम्हारे गॉंव की गलियॉं
तुम्हें वो याद करके अश्क बहाती है चले आओ
वाहहहहहहहहहह
शहर में जा बसी नई पीढ़ी को पुनः अपने आंचल में समेटने को आतुर गाँव की पुकार को सुंदर अभिव्यक्ति दी है |सद्प्रयास पर बधाई |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online