Comment
बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Mathpal जी
आदरणीय गोपाल नारायन जी, इस बह्र में यदि लय भंग न हो तो २२२ को १२१२ भी लिया जा सकता है। अतः मिसरा बह्र से बाहर नहीं है। ग़ज़ल पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बहुत शुक्रिया maharshi tripathi जी
जिनके थे विश्वास अलग
उन सबको शैतान पढ़ा
बस उसका गुणगान पढ़ा
कब तुमने भगवान पढ़ा
इस लाजवाब रचना के लिए कोटि कोटि बधाई ...आ० भाई धर्मेन्द्र जी .
कब संतान पढ़ा तुमने
बस झूठा सम्मान पढ़ा
जिनके थे विश्वास अलग
उन सबको शैतान पढ़ा
आदरणीय धर्मेंदर जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों बधाई स्वीकार करें |सादर अभिनन्दन |
वाह..... शास्त्र पढ़े विज्ञान पढ़ा .... कब तुमने इंसान पढ़ा.... बहुत ख़ूब.... सादर
आदरणीय धर्मेन्द्र जी छोटी बह्र की बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई निवेदित है
सुन्दर गजल के लिए दाद! कबूल फरमाए! भाई धर्मेंद्र ज़ी! बहुत बहुत ही सुन्दर गजल हुयी है.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online