जिंदगी की कहानी सुनाता रहा
दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा
प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं
बात क्या थी जिगर में दबाता रहा
जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर
मुसकुरा कर निगाहें चुराता रहा
तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा
आइना कांच में मैं बनाता रहा
मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर
हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा
जीतकर जो मुझे हारता ही रहा
हारकर भी उसे मैं जिताता रहा
तू बताना “निधी”मैं गलत तो नहीं
मर्म मेरा मुझे क्यों सताता रहा
निधि
Comment
@गिरिराज भंडारी जी.. ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति का बहुत बहुत आभार .. अगली बार से ये गलती नहीं होगी
आदरणीया निधि जी , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । बह्र ऊपर लिख देने से अन्य सीखने वालों को सहायता हो जाती है , संभव हो तो लिख दिया करें ।
पहली लेकिन शानदार कोशिश........
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई
वाह्ह्ह वाह्ह्ह बहुत सुंदर ग़ज़ल आपकी ...
तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा
आइना कांच में मैं बनाता रहा
मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर
हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा
जीतकर जो मुझे हारता ही रहा
हारकर भी उसे मैं जिताता रहा....वाह्ह्ह शानदार
Nidhi Plus जी आपकी मेहनत और जज्बे का ही प्रतिफल है ये रचना
बहुत सुन्दर गजल हुयी हुयी है
हर शेर लाजबाब है
वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह
एक बार और वाहहहह
शुक्रिया लक्ष्मण धामी जी आपकी प्रेरणा से सही होगा
पहली कोशिश और वह भी इतनी उम्दा....अंजाम और भी बेहतरीन होते जायेंगे ...... ढेरों मुबारकबाद
आप सभी महानुभावों का बहुत बहुत आभार .. मैंने इस मंच पर अपनी अपनी रचना पहली बार पोस्ट की थी.
फेसबुक के कुछ ग्रुप्स में रचनाएँ प्रस्तुत करती रही हूँ और जो कुछ सीखा है वहीँ सीखा. कोशिश जारी है
इस मंच पर मुझे "ग़ज़ल की कक्षा" खींच लायी ताकि बहर के बारे में और अधिक सीख सकूँ.
आप सभी मित्रों की समीक्षा प्रेरणा देती रहेगी इसी आशा में हूँ.. धन्यवाद्
//प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं
बात क्या थी जिगर में दबाता रहा
मुफलिसी में न बन जो सके हमसफर
हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा//
आदरणीया निधि जी ये दो अश'आर बेहतरीन हैं दाद हाज़िर है कुबूल फरमायें
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