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मेरी पहली कोशिश

जिंदगी की कहानी सुनाता रहा

दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा

प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं

बात क्या थी जिगर में दबाता रहा

जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर

मुसकुरा कर  निगाहें चुराता रहा

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

जीतकर जो मुझे हारता ही रहा   

हारकर भी उसे मैं जिताता रहा

तू बताना “निधी”मैं गलत तो नहीं

मर्म मेरा मुझे क्यों सताता रहा 

निधि  

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Comment

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Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 13, 2015 at 5:46am

वाह शब्द संयोजन बहुत खूब किया है और भाव उभर के आये हैं ...बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2015 at 10:06pm

यदि यह आपका पहला प्रयास है तो आप बहुत आगे तक जायेंगी, अच्छी प्रस्तुति हुई है, बहुत बहुत बधाई निधि जी.

Comment by Shyam Mathpal on March 12, 2015 at 8:27pm

Sundar rachna ke liye dheron badhai.

Comment by maharshi tripathi on March 12, 2015 at 8:14pm

जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर

मुसकुरा कर  निगाहें चुराता रहा||

जीतकर जो मुझे हारता ही रहा   

हारकर भी उसे मैं जिताता रहा

 

मंच का आगाज इतनी अच्छी गजल से ,,,आपको हार्दिक बधाई आपकी इस सुन्दर गजल हेतु आ. Nidhi Plus जी |

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 12, 2015 at 6:39pm
जिंदगी की कहानी सुनाता रहा
दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा
प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं
बात क्या थी जिगर में दबाता रहा
बहुत सफल एवं सुन्दर है पहली कोशिश, बधाई , आदरणीय।
Comment by नादिर ख़ान on March 12, 2015 at 6:18pm

जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर

मुसकुरा कर  निगाहें चुराता रहा

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

आदरणीय बहुत सुंदर गज़ल कही आपने जहाँ तक मै समझ पा रहा हूँ

 वज्न   212  212  212  212  है 

पहली कोशिश इतनी उम्दा है, क्या कहने....... ढेरों मुबारकबाद ।

"मुफलिसी में न बन जो सके हमसफर" इस पंक्ति को क्या यूँ लिखा जा सकता है 

"मुफ़लिसी में नहीं बन सके जो मेरे" .....

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 12, 2015 at 4:37pm
पहला प्रयास अच्छा है। दाद कुबूलें। मंज पर ग़ज़ल के बारे में बहुत सारी जानकारियाँ ‘ग़ज़ल’ समूह में उपलब्ध हैं। उन्हें अवश्य पढ़ें
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2015 at 4:37pm

आपने अच्छा तर्क दिया है!मुबारकबाद!!

Comment by Nidhi Agrawal on March 12, 2015 at 4:25pm

आप सभी का शुक्रिया .. ग़ज़ल पुरुष की तरह लिखी है .. नाम से क्या होता है

Comment by Shyam Narain Verma on March 12, 2015 at 4:14pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

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