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बनाता खेत की रश्में - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

1222  1222 1222 1222

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बनाता  खेत  की  रश्में  चला  जो  हल नहीं सकता
लगाता  दौड़  की  शर्तें  यहाँ   जो  चल  नहीं सकता

***
पता  तो  है  सियासत  को  मगर  तकरीर करती है
कभी तकरीर  की  गर्मी  से  चूल्हा जल नही सकता

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भरोसा  आँख  वालों से  अधिक  अंधों को जो कहते
तुम्हें धोखा  हुआ  होगा कि सूरज  ढल नहीं  सकता

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असर  कुछ  छोड़ जाएगी  मुहब्बत  की झमाझम ही
किसी के शुष्क  हृदय  को भिगा बादल   नहीं सकता

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अगर निकले वो आहों से  तपन सूरज से भी बढ़कर
न सोचो  यार  अश्कों से  बदन ये  जल नहीं सकता

****

भरोसा  भूल  कर  भी तुम  जहाँ में यार करना मत
छले जो नारियों को नित किसे वो छल नहीं सकता

****

दुखाए  मात का मन  जो ‘मुसाफिर’ ठीक कहता है
उसे वरदान  ईश्वर  का जहाँ  में फल  नहीं सकता

****

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 768

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:09am


आ० भाई शिज्जु जी अपनी उपस्थिति से मान बढ़ने के लिए हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:09am

आ0 श्याम  भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद  l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:09am


आ० भाई मोहन जी , हार्दिक आभार i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:08am

आ० भाई महर्षि जी , प्रशंसा के लिए आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:08am

 
आ० भाई विजय जी , उपस्तिति से ग़ज़ल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद .l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:08am


आ0  भाई श्याम नारायण जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:08am


आ० भाई  कृष्णा जी  , सरहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:07am

आ0 धर्मेंदर भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 8:47am

बहुत बढ़िया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बधाई इस सुंदर ग़ज़ल के लिये

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 13, 2015 at 6:05am

आ: लक्ष्मण धामी जी सुंदर रचना के लिये बधाई .....  सादर 

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