रुख़सती पे उनकी आँखों में नमी अच्छी लगी
ज्यूं दूर बादलों को धरा की गमी अच्छी लगी
तबस्सुम देख के मचली लबों पे एक दूसरे के
पाक इरादों में छिपी उनकी कमी अच्छी लगी
असीम समन्दर की रगों में खारापन भी देखिए
फिर भी मिलने आ गई मीठी नदी अच्छी लगी
अपनी मिल्कियत समझता रहा जहाँ को दोस्तों
चलते हुए उनको भी दो गज जमीं अच्छी लगी
@आनंद १४/०३/२०१५ मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
"असीम समन्दर की रगों में खारापन भी देखिए
फिर भी मिलने आ गई मीठी नदी अच्छी लगी"
बहुत बढ़िया |
आ० गिरिराज जी एवं डॉ गोपाल जी की बात का समर्थन करती हूँ ये प्रस्तुति भाव प्रधान हैं ग़ज़ल की कसौटी पर कसोगे तो बेहतरीन ग़ज़ल बन सकती है ,प्रयास कीजिये सफलता मिलेगी बहरहाल इस प्रयास पर हार्दिक बधाई.
आनंद जी
आ० भंडारी जी के मंतव्य पर ध्यान दे . आपकी गजल का भाव पक्ष अच्छा है .तनिक प्रयास से आप अच्छे शुद्ध गजल लिख सकते हैं .सस्नेह .
Priya Anad Murti ji,
Sundar rachna ke liye badhai.
आ. आनन्द भाई , रचना के भाव बहुत सुन्दर लगे ! गज़ल के करीब ज़रूर है रचना पर गज़ल नहीं हो पाई है । अगर आप गज़ल कहना चाह रहे हैं तो मंच मे उपलब्ध ' ग़ज़ल की बातें ' पाठ का अध्ययन ज़रूर करें ॥
श्री आनंद मूर्ति जी ,सुन्दर प्रयास ,सुन्दर ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको !
असीम समन्दर की रगों में खारापन भी देखिए
फिर भी मिलने आ गई मीठी नदी अच्छी लगी...........वाह !!! बहुत खूब आ.भाईanand murthy जी |
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