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ग़ज़ल - घी डालना होगा................ (मिथिलेश वामनकर)

1222---1222---1222---1222

 

हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा

यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।

 

कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन

बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो  देखना होगा।

 

हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब

कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।

 

किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन

सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।

 

लड़ाई कौम की खातिर, करो लेकिन ज़ुरूरी है

अकीदत में मुहब्बत का जरा घी डालना होगा।

 

नई ये मीडिया-सोशल, बरत लो सब मज़े लेकर

मगर बच्चा ये बिगड़ा है, संभलकर पालना होगा।

 

कभी हिम्मत नहीं करते कि अपनी आँख ही मल लें

उन्ही बेजार हाथों को घड़ी भर थामना होगा।

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 7:41pm
आदरणीय श्याम मठपाल जी सराहना के लिए हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 7:40pm
आदरणीय श्याम नरेन वर्मा जी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 7:38pm
आदरणीय शिज्जु भाई जी स्नेह और सराहना के लिए हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 18, 2015 at 6:02pm

आदरनीय मिथिलेश भाई ,  आपने एक और बढिया गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । 

आदरणीय गोपाल भाई जी की बात से मै भी सहमत हूँ --  वो मिसरा कहन के हिसाब से सुधार चाह रहा है ।

गैर ज़रूरी सलाह -

1 -बसेसर का जला क्यूँ घर, यही बस देखना होगा।   ----  बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो देखना होगा  

2-

अदावत में मुहब्बत का जरा घी डालना होगा।  ----  अदावत में मुहब्बत से जरा घी डालना होगा    ( आग मे घी डालने को , आग भड़काने का काम माना जाता है )

 

 

 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 18, 2015 at 5:30pm
हार्दिक बधाइ स्वीकार करें इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए । सादर ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on March 18, 2015 at 1:27pm
वाह वाह क्या गजल कही,सुंदर भाई,बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 12:38pm

आदरणीय वामनकर जी

मतले मे ही झोल !

जहाँ मुफ़लिस के आने का अगर यारों मना होगा------ यहाँ  'अगर ' का प्रयोग  और  फिर ' आने का मना होगा '---मित्र  कुछ तो गड़बड़ है . यूँ भी कह सकते थे ------

 जहाँ मुफ़लिस क आना  भी  मिरे  यारों मना होगा

बाकी गजल बेहद उम्दा  .  आपको बधायी . सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 18, 2015 at 11:23am
प्रिय मिथिलेश जी , इस सन्देश परक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 10:59am

आदरणीय वामनकर जी ,

सुंदर रचना के लिए बधाई .

Comment by Shyam Narain Verma on March 18, 2015 at 9:59am
हार्दिक बधाइ स्वीकार करें इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए । सादर ।

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