1222---1222---1222---1222
हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा
यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।
कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन
बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो देखना होगा।
हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब
कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।
किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन
सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।
लड़ाई कौम की खातिर, करो लेकिन ज़ुरूरी है
अकीदत में मुहब्बत का जरा घी डालना होगा।
नई ये मीडिया-सोशल, बरत लो सब मज़े लेकर
मगर बच्चा ये बिगड़ा है, संभलकर पालना होगा।
कभी हिम्मत नहीं करते कि अपनी आँख ही मल लें
उन्ही बेजार हाथों को घड़ी भर थामना होगा।
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरनीय मिथिलेश भाई , आपने एक और बढिया गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय गोपाल भाई जी की बात से मै भी सहमत हूँ -- वो मिसरा कहन के हिसाब से सुधार चाह रहा है ।
गैर ज़रूरी सलाह -
1 -बसेसर का जला क्यूँ घर, यही बस देखना होगा। ---- बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो देखना होगा
2-
अदावत में मुहब्बत का जरा घी डालना होगा। ---- अदावत में मुहब्बत से जरा घी डालना होगा ( आग मे घी डालने को , आग भड़काने का काम माना जाता है )
आदरणीय वामनकर जी
मतले मे ही झोल !
जहाँ मुफ़लिस के आने का अगर यारों मना होगा------ यहाँ 'अगर ' का प्रयोग और फिर ' आने का मना होगा '---मित्र कुछ तो गड़बड़ है . यूँ भी कह सकते थे ------
जहाँ मुफ़लिस क आना भी मिरे यारों मना होगा
बाकी गजल बेहद उम्दा . आपको बधायी . सादर
आदरणीय वामनकर जी ,
सुंदर रचना के लिए बधाई .
हार्दिक बधाइ स्वीकार करें इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए । सादर । |
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