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श्रृंगारिक ग़ज़ल - कमसिन उमरिया

212 212 212 212

 

कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी

दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी

 

ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी 

नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी

 

फूल बन के खिली गुलबदन ये कली 

आरजू फिर महक की जवां हो गयी

 

प्यार की बात हमने छुपाई बहुत

लोग सुनते रहे दासतां हो गयी

 

होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए

कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी

 

दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”

आज मन की जमीं आसमां हो गयी 

निधि 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 19, 2015 at 8:24pm

मरे कहने का आशय यही था, आदरणीया निधिजी.

साहित्यिक मंचों तथा पॉपुलर सोशल साइट्स पर रचना प्रस्तुत करने में यही फ़र्क़ है,आदरणीया.

सादर

Comment by Nidhi Agrawal on March 19, 2015 at 6:38pm

आदरणीय सौरभ जी .. मैंने तो गूगल टाइप का इस्तेमाल किया था श्रृंगार की स्पेल्लिंग लिखने पर दोनों शब्द आये मैंने ये चुन लिया ..दोनों शब्द चलन में है .. मुझे नहीं पता था की हिंदी डिक्शनरी में ऐसा शब्द नहीं है ..माफ़ी चाहूंगी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 19, 2015 at 5:00pm

मेरे विन्दु अनुत्तरित हैं

शब्दों की अक्षरियों के प्रति तथा उनके उच्चारण के प्रति तनिक सचेत रहना आवश्यक है.

Comment by Nidhi Agrawal on March 19, 2015 at 3:14pm

रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 10:57am

आदरणीया निधि जी , बढिया गज़ल हुई है , बहुत सुनद भाव हैं । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Nidhi Agrawal on March 19, 2015 at 10:16am

आदरणीया राजेश कुमारी जी.. आदरणीय मिथिलेश जी बहुत बहुत धन्यवाद् 

अजनबी तुमने देखा मुझे इस तरह .. ही सही लगता है अभी सही कर के फिर से पोस्ट करती हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2015 at 10:15am

धन्यवाद मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 10:09am
आदरणीय दीदी मेहरबां 212 ही होना चाहिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2015 at 10:08am

अजनबी तुमने देखा मुझे  इस तरह -----कर लीजिये मिथिलेश जी ने सही फरमाया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2015 at 10:06am

यदि मुझे अपनी किसी ग़ज़ल में यही शब्द मेह्रबां   डालना पड़े तो मात्राएँ क्या होनी चाहिए इसी लिए मैं अपना भी मार्गदर्शन गुनीजनों से चाहती हूँ 

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"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
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