For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ए-हुस्न-जाना...............'जान' गोरखपुरी

ए-हुस्न-जाना..

दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...

अब मुझको आया कुछ आराम है।

कि तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।

ए-हुस्न-जाना..

दिल अब तुझसे बेजार है..

हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।

हूँ जिसका मै सिपहसलार बेकार वो दिल का रोजगार है।

ए-हुस्न-जाना..

दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...

मालूम मुझको तेरा मकाम है।

के तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।

ए-हुस्न-जाना..

छोड़ कफ़स-ए-शम्मा-परवाना...

दुनिया-ए-रू में आ देख क्या आराम है।

मै नहीं! तू नहीं! दर नहीं! हरम नहीं!

कोई है,सब उसी के नाम हैं।

****************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) जान गोरखपुरी

****************************************

Views: 807

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 8:19pm

यहाँ केवल रूह ही बात नही हो रही है आदरणीय! ''रूहों की दुनिया'' का अर्थ पर मृत्युलोक के रूप में निकलता!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 8:04pm
क्यों भाई जी ज़िंदा लोगों की रूह नहीं होती क्या?
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 7:58pm

सही कहा आपने आदरणीय मिथिलेश सर! दुनिया-ए-रू का  अर्थ चेहरे की दुनिया ही सीधे-सीधे निकलता है!

मै ''दुनिया-ए-रूह'' लिखना चाहता था लेकिन इसका अर्थ ''आत्मा की दुनिया'' यानी मौत  के बाद की दुनिया के रूप में निकलता इसलिये दुनिया-ए-रू लिखा, ये मेरे द्वारा ही गढा शब्द है!ऐसा लिखना ही मुझे श्रेयस्कर लगा!!  दुनिया-ए-''रू'' ज्यादा बेहतर रहता! आपका हार्दिक आभार आदरणीय!आपके माध्यम से मै जो कहना चाहता था,वो सबके सामने रख सका!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 10:32am

अपने अनुसार लुगत की गज़ब जुगत लगाई है भाईजी वैसे दुनिया-ए-रू को चेहरे की दुनिया कहना अधिक सही है 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:55am

  आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी, संदर प्रयास है ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 22, 2015 at 11:49pm

आदरणीय मिथिलेश जी गीत के रूप में लिखने का प्रयास किया है!

आप जैसे गुनी मेरी रचना पर इतना समय दें यह देख मन हर्षित हुआ!आपके प्रेम का मै आभारी हूँ!! सादर!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 22, 2015 at 11:42pm

आदरणीया rajesh kumari जी रचना पर आपकी उपस्थिति से रचना को मान मिला! लिखना सार्थक हुआ१बहुत बहुत आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 22, 2015 at 11:33pm

छोड़ कफ़स-ए-शम्मा-परवाना...

दुनिया-ए-रू में आ देख क्या आराम है।

भावार्थ- जिस तरह आग की ओर स्वाभाविक रूप से पतंगा अपनी दैहिक कैद के कारण आकृष्ट होता है! आओ इस कैद से मुक्त हो! आत्मिक शांति के संसार में मिले!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 22, 2015 at 11:32pm

ए-हुस्न-जाना = ए मेरी हुस्न रुपी प्रेमिका

दुनिया-ए-रू = आत्मिक संसार या आत्मिक शांति की दुनिया

कफ़स-ए-शम्मा-परवाना= जिस तरह आग की ओर स्वाभाविक रूप से पतंगा अपनी दैहिक कैद के कारण आकृष्ट होता है! आओ इस कैद से मुक्त हो! आत्मिक शांति के संसार में मिले!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 22, 2015 at 9:14am

किसी के द्वारा पैदा किये गये हालात-ए-तग़ाफुल के निमित्त भाव बढ़िया हैं रचना में .किन्तु मुझे भी  मिथिलेश जी के प्रश्नों के उत्तर का इन्तजार है ताकि हमारा भी कुछ ज्ञान वर्धन हो सके|शुभ-शुभ   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service