गरीब है
पर स्वाभिमानी बहुत है
सब्जी की ढकेल
शहर की कोलोनियों में
घुमाता है
जोर जोर से सब्जियों के
नाम की आबाज
लगाता है
आखिर में ले लो साहब
कहकर जरूर चिल्लाता है
कुछ आदतें हो गयी हैं
उस पर हावी
कल की सब्जियों को भी
कह जाता है ताजी
कुछ सब्जियाँ
पूरी बिक चुकी होती हैं
उनका भी नाम पुकार जाता है
बीच बीच में पानी के छींटों से
सब्जियों को सँवार जाता है
ऊँचे लोगों की नीची हरकतों को
बखूबी पहचानता है
लाखों कमाने वालों की
रुपये दो रुपये की चिक चिक
को जानता है
पाव सब्जी के बदले
चार बातें सुना जाते हैं
ये ऊँचे लोग
पता नहीं फिर भी क्यों कहाते हैं
ये ,ऊँचे लोग
माँ -बाबूजी ,भाई-भाभी
कोई तो नहीं रहता है इनके साथ
इसीलिये तो चार भिण्डियों से
बन जाती है बात
बडे लोगों की छोटी हरकतें
सहन कर जाता है वो
क्योंकि रोज माँ-बाबूजी की दवाई
लेकर घर जाता है वो
शाबाश !सब्जी वाले
हकीकत में तो बडे लोगों से बडा है तू
लाख-गरीब होकर भी
माँ-बाबूजी के साथ खडा है तू
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर, सजीव सा चित्रण. बधाई आदरणीय उमेश जी
सर मिथिलेश वामनकर जी मैंने कविता के माध्यम से एक सब्जी की फेरी वाले का चित्र खींचने का हल्का सा प्रयास किया है....
आदरणीया Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी शुक्रिया
आदरणीया मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया मन बहुत प्रसन्न हुआ कि आपने मेरी रचनाओं को गहराई से पढ़ते हो ....मैं आपको बिल्कुल गलत नहीं कहुंगा आपके विचार आपके हैं और आलोचनात्मक रवैया रखना भी जरूरी है क्योंकि ये माहौल हमें उत्तरोत्तर सुधार करने को कहता है सादर आभार.......
सुंदर और सत्य....भावपूर्ण ...बधाई
आदरणीय उमेश भाई जी अपने मर्म को अभिव्यक्त करती रचना पर बधाई...
आप अन्यथा न ले एक बात साझा करना चाहता हूँ कि ये कविता थोड़ी इतिवृत्तात्मक हो गई है.... लग रहा है किसी कहानी/लघुकथा या उसके किसी भाग को काव्य रूप में ढाला गया है, जिसमे काव्यात्मकता कम लग रही है. हो सकता है अतुकांत कविता की समझ न होने के कारण मुझे ऐसा भ्रम हो रहा हो. आपकी कई अच्छी रचनाएँ पढ़ चूका हूँ इसलिए इस रचना पर विचार साझा कर रहा हूँ. सादर
आदरणीयासुनील प्रसाद(शाहाबादी) जी शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी शुक्रिया
आदरणीय Shyam Mathpal जी शुक्रिया
आदरणीय Meena Pathak जी शुक्रिया
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online