For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- उजाला काटने को दौड़ता है |

बह्र :-फ़ऊलुन फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन

दिवाना पन नहीं तो और क्या है
उजाला काटने को दौड़ता है

यही छोटा सा घर दुनिया है मेरी
इसी का नाम जन्नत रख दिया है

मैं भूका हूँ मुझे रोटी खिला दो
कोई साइल गली में चीख़ता है

मैं सच्चाई के पैरों पर खड़ा हूँ
मुक़ाबिल झूट के सर पर खड़ा है

सभंल कर ए दिल-ए-नादाँ सभंल कर
तू किन ऊंचाईयों को छू रहा है

वहीं से रोशनी फूटी है यारो
जहाँ मेरा सितारा डूबता है

"समर" दिल आपने तोड़ा है जबसे
अजब हमदर्दियों का सिलसिला है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 970

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 1, 2015 at 10:03am
जनाब "जान" गोरखपुरी साहिब,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on March 31, 2015 at 10:05pm
जनाब श्याम मथपाल जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 7:53pm

आदरणीय समर कबीर जी , 

बहुत खूब , हार्दिक बधाई .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 4:49pm

वाह वाह!! हर शेर जबरदस्त! आपका गजल कहने का एक अलग ही तरीका है जो सीधे दिल में उतरता है!बहुत कुछ सीख़ रहे है आपसे आदरणीय समर जी!अभिनन्दन!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 31, 2015 at 9:17am

आदरणीय समर साहब ग़ज़ल को लेकर आपका समर्पण हम जैसे छात्रों के लिये प्रेरणा का कारण हुआ करता है। इस बमिसाल ग़ज़ल के लिये दाद हाज़िर है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2015 at 6:23am

आ0 भाई समर कबीर जी बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है . हार्दिक बधाई .

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 31, 2015 at 4:03am
"समर" दिल आपने तोड़ा है जबसे
अजब हमदर्दियों का सिलसिला है
क्या बात है, आदरणीय समर कबीर साहिब , नमस्कार , बहुत खूब , पूरी ग़ज़ल बहुत उम्दा है , बहुत बहुत बधाई, सादर ,
Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 7:26pm

आदरणीय समर कबीर जी ,आपकी तो हर रचना एक पाठशाला है 

यही छोटा सा घर दुनिया है मेरी
इसी का नाम जन्नत रख दिया है.....आनंद आ गया 

वहीं से रोशनी फूटी है यारो
जहाँ मेरा सितारा डूबता है......बहुत खूब , हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on March 30, 2015 at 4:44pm
उम्दा गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद ....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 30, 2015 at 3:29pm

आदरणीय समर कबीर जी बहुत ही उम्दा और बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. मतला से मक्ता तक कमाल ही कमाल. हर शेर एक से बढ़कर एक. आपकी ग़ज़लों से हमेशा सीखने को मिलता है. बेहतरीन ग़ज़ल से रु-ब-रू कराने के लिए हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service