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असर क्या करेंगी अलाये-बलाये /// गजल (एक प्रयास )

मुतकारिब मुसम्मन सालिम

१२२   १२२   १२२   १२२

तुम्हे आज प्रिय नीद ऐसी सुलायें

झरें इस जगत की सभी वेदनायें I  

 

नहीं है किया काम बरसो से अच्छा   

चलो नेह  का एक दीपक जलायें I

 

गरल प्यार में इस कदर जो भरा है  

असर  क्या  करेंगी अलायें-बलायें  I  

 

तुम्हारी  अदा है  धवल -रंग ऐसी   

कि शरमा गयी चंद्रमा की कलायें I

 

जगी आज ऐसी विरह की तड़प है

सहम सी गयी  है सभी चेतनायें I

 

नहीं याद करता शुभे अब तुम्हारी  

हमी मौन रो लें तुम्हें क्यों रुलायें I

 

चलो आज ‘गोपाल’ नजदीक बैठो

हमीं जाम इस शाम तुमको पिलायें I

.

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 7:22pm

आ0  दिनेश कुमार जी

बहुत आभार

Comment by दिनेश कुमार on April 6, 2015 at 6:51pm
अत्युत्तम ..!! वाह वाह वाह, आदरणीय गोपाल सर जी। लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी तरफ से भी ढेरों दाद व मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए।
Comment by Nirmal Nadeem on April 6, 2015 at 1:18pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है जनाब बहुत ही सुंदरता  निभाया है आपने।  दिली दाद हाज़िर है। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 10:53am

प्रिय नजील भाई

आपका आभार. स्नेह .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 10:53am

आ० विजय सर !

सादर नमन .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 10:52am

आ० नीलेश जी

आप जैसे उस्ताद की संस्तुति मेरे लिए  संतोष का विषय  है . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 10:50am

आ० बुन्देली जी

आपका आभारी हूँ , कविराज . सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 10:48am

आ० भंडारी जी /अनुज

आप पीठ थपथपाते है तो अच्छा लगता है . सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 10:47am

आ० शिज्जू भाई

उस्तादों से संस्तुति का अपना ही मजा है .सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 10:45am

 आ० समर कबीर साहेब

मैं  तो अभी सीख रहा हूँ .आपने इतना बड़ा आशीर्वाद देदिया . सादर.

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