For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है ( गिरिराज भंडारी )

चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है

22  22  22  22   22  2

***********************************

याद मुझे वो अक्सर ही आ जाती है

चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है

 

आग चढ़ी वो दूध भरी काली मटकी

वो मिठास अब कहाँ कहीं मिल पाती है 

 

वो कुतिया जो संग आती थी खेतों तक

उसके हिस्से की रोटी बच जाती है

 

छुपा छुपव्वल वाली वो गलियाँ सँकरीं

दिल की धड़कन , यादों से बढ़ जाती है

 

डंडा पचरंगा खेले जिस बरगद में

ख़्वाबों में उसकी डाली आ जाती है 

  

शाला की मेरी कुर्सी वो टूटी सी   

कलम पट्टियाँ ले कर मुझे बुलाती है

 

ज़िन्दा रखना गाँव सदा अपने अन्दर

खुश्बू अमराई की आ समझाती है

 

धुयें धूल से भरी सड़क से पूछूँगा

क्या गाँवों की पगडंडी तक जाती है

***********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 924

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 8, 2015 at 5:43pm

आदरणीय शिज्जु भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 8, 2015 at 5:22pm

आदरणीय गिरिराज सर पुरअसर ग़ज़ल कही है आपने हर शेर लाजवाब है बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 8, 2015 at 4:47pm

आदरणीय समर कबीर भाई , आपकी सराहना ने मेरी ग़ज़ल मुकम्मल कर दी , आदरणीय, हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by Samar kabeer on April 8, 2015 at 4:22pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,तारीफ़ के लिये अलफ़ाज़ नहीं है मेरे पास,इतनी अच्छी,इतनी सुन्दर, मुकम्मल,लाजवाब ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 11:28am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी सराहना ने मेरी मेहनत सफल कर दी ॥ हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 11:27am

आदरणीय कृष्णा भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 11:26am

आदरणीया प्रतिभा जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका शुक्रिया !!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 10:01am

आदरणीय गिरिराज जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। दाद कुबूल कीजिए

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 9:42am

लाजव़ाब रचना आदरणीय!अभिनन्दन!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 6:38am

आदरणीय विजय  भाई , ग़ज़ल की सरहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service