खुशी जो हमने बांटी गम कम तो हुआ
हुए बीमार भार तन का कम तो हुआ
माँगी जो हमने कीमत मिली हमें दुआ
उनके बजट का भार कुछ कम तो हुआ
मरहूम हो गए दुःख सहे नही गए
उनके सितम का भार कुछ कम तो हुआ
माना कि मेरे मौला है नाराज इस वकत
फक्र जिनपे था भरोसा कम तो हुआ
मालूम था उन्हें हमसे हैं वो मगर
उनकी नजर में एक ‘मत’ कम तो हुआ
अन्नदाता बार बार कहते है जनाब
भूमि का भागीदार एक कम तो हुआ
(मौलिक व अप्रकाशित)
मैंने गजल लिखने का प्रयास किया है, क्या है? और कहाँ सुधार की गुंजाईश है, अवश्य चिह्नित करें
- जवाहर
Comment
आदरणीय डॉ विजय shankar साहब, आपके परामर्श के अनुसार सुधार का लिया गया आगे और अपेक्षित सुझाव की उम्मीद करता हूँ सादर!
राजनीति से सामाजिक मुद्धों तक आपका जबाब नही ,,
जी आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी ... मैं सीखना चाहता हूँ कोशिश जारी रहेगी
आदरणीय जवाहर जी आपकी कोशिश बहुत बढ़िया है , बाकी विद्वजन जरूर बतायेंगे ! सादर
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