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ग़ज़ल-नूर: जिस्म का क्या हुआ ख़बर न हुई.

२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)

ज़िन्दगी हाल का सफ़र न हुई
जैसे इक रात की सहर न हुई.
.

तेरी जानिब मैं देखता ही रहा
मेरी जानिब तेरी नज़र न हुई.
.
फ़ायदा क्या हुआ ग़ज़ल होकर
तर्जुमानी तेरी अगर न हुई.
.
पहले पहले हया का पर्दा रहा
फिर ज़रा भी अगर मगर न हुई .
.
दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी
याद तेरी इधर उधर न हुई.
.
ख़ुद को भूला तुझे भुलाने में
कोई तरकीब कारगर न हुई.
.
‘नूर’ बिखरा था याद है मुझको
जिस्म का क्या हुआ ख़बर न हुई.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Samar kabeer on April 21, 2015 at 11:14am
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,पुख़्ता, मुकम्मल, ख़ूबसूरत,कामयाब ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

"दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी
तेरी यादें इधर उधर न हुई "

सानी मिसरा इस तरह कर लें तो ठीक रहेगा :-

"याद तेरी इधर उधर न हुई"

क्यूँकि "याँदें" बहुवचन है,और रदीफ़ एक वचन है |
Comment by H. S. Yadava on April 21, 2015 at 7:53am

आत्मा के  तल   पर प्रेम!!

बड़ी सिद्दत  से  दी गई आवाज (शब्द).


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 20, 2015 at 9:26pm

'खफीफ मुसद्दस मखबून मक्तुअ' बह्र पर पर कसी हुई बहुत सुन्दर ग़ज़ल  हुई नीलेश जी, दिल से बधाई 

तेरी जानिब मैं देखता ही रहा 
मेरी जानिब तेरी नज़र न हुई.-----क्या बात 

फ़ायदा क्या हुआ ग़ज़ल होकर 
तर्जुमानी तेरी अगर न हुई.---शानदार वाह्ह्ह 
.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 20, 2015 at 8:55pm

ख़ुद को भूला तुझे भुलाने में
कोई तरकीब कारगर न हुई.   वाह! वाह!

सुन्दर गजल पर बधाई आदरणीय!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 8:25pm

शुक्रिया आ. दिनेश जी ...आपने महीन त्रुटी की ओर ध्यान दिलाया ..दरअसल ये समस्या हम मराठी भाषियों के साथ सहती ही है.
आप सबके सानिध्य में सुधार हो सकेगा.
 

दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी 
तेरी यादें इधर उधर न हुई....इस शेर को अब यूँ पढ़ा जाए 
.
दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी 
याद तेरी इधर उधर न हुई.
.
सादर 

Comment by दिनेश कुमार on April 20, 2015 at 7:38pm
बेहतरीन मकता , वाह वाह
Comment by दिनेश कुमार on April 20, 2015 at 7:30pm
Excellent....दाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय भाई निलेश जी।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 7:25pm

शुक्रिया आ. डॉ विजय शंकर जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 20, 2015 at 7:16pm
पहले पहले हया का पर्दा रहा
फिर ज़रा भी अगर मगर न हुई ॥
वाह ! क्या बात है , बहुत बहुत बधाई, आदरणीय नीलेश नूर जी , सादर।

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