22/22/22/22 (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
ज़ुल्फों को जंजीर लिखेगा,
तो कैसे तकदीर लिखेगा.
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जंग पे जाता हुआ सिपाही,
हुस्न नहीं शमशीर लिखेगा.
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राज सभा में मर्द थे कितने,
पांचाली का चीर लिखेगा.
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ईमां आज बिका है उसका,
अब वो छाछ को खीर लिखेगा.
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कोई राँझा अपनें खूँ से,
जब भी लिखेगा, हीर लिखेगा.
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शेर कहे हैं जिसने कुल दो,
वो भी खुद को मीर लिखेगा.
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नहीं जलेगा वो ख़त तुझसे,
जो आँखों का नीर लिखेगा.
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‘नूर’ की बातें नूर ही समझे,
कब्र को भी जागीर लिखेगा.
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नूर
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आ. मनोज कुमार अहसास जी ..इस २२२ मात्रा वाली बहर में २२२ को कहीं भी ११२२, १२१२, २२११, २१२१ आदि लेने की छूट है ..उसी सन्दर्भ में in कॉम्बिनेशन्स का ज़िक्र किया है
सादर
आप सब की मुहब्बतों का शुक्रिया. कल सप्ताहांत के चलते बहुत व्यस्त रहा इसलिए उपस्थित न हो सका. क्षमा प्रार्थी हूँ ..
आप सबने ग़ज़ल को समय दिया और सराहना की इससे अभिभूत हूँ
दिल से शुक्रिया
सादर
क्या बात है , पूरी गज़ल बे मिसाल लगी , हर शे र के लिये दाद हाज़िर है स्वीकार करें ॥
राज सभा में मर्द थे कितने,
पांचाली का चीर लिखेगा.
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कोई राँझा अपनें खूँ से,
जब भी लिखेगा, हीर लिखेगा.
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नूर’ की बातें नूर ही समझे,
कब्र को भी जागीर लिखेगा.
वाह नूर साहब क्या कहने ..अच्छे अशआर निकाले ..
नहीं जलेगा वो ख़त तुझसे,
जो आँखों का नीर लिखेगा. ,,,क्या बात है
जंग पे जाता हुआ सिपाही,
हुस्न नहीं शमशीर लिखेगा.,,,,,क्या जज्वा है
ज़ुल्फों को जंजीर लिखेगा,
तो कैसे तकदीर लिखेगा..बिलकुल सही
वाह ...मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आ० नूर भाई
गजल बहुत भाई
वाह वाह आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी उम्दा ग़ज़ल के लिये बधाई ...सादर
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