रे पथिक, रुक जा! ठहर जा! आज कर कुछ आकलन
बाँच गठरी कर्म की औ’ झाँक अपना संचयन
हैं यहाँ साथी बहुत जो संग में तेरे चले
स्वप्न बन सुन्दर सलोने कोर में दृग की पले,
प्रीतिमय उल्लास ले सम्बन्ध संजोता रहा
या कपट,छल,तंज से निर्मल हृदय तूने छले ?
ऊर्ध्वरेता बन चला क्या मुस्कुराहट बाँटता ?
छोड़ आया ग्रंथियों में या सिसकता सा रुदन ?.......रे पथिक..
कर्मपथ होता कठिन, तप साधता क्या तू रहा ?
या नियतिवश संग लहरों के सदा बेबस बहा ?
लक्ष्यहित उन्मुख हृदय नें राह शुचिकर ही चुनी,
या उसूलों से डिगा मन लोभवश पल में ढहा ?
वासना के जाल में आबद्ध हर इक श्वास से,
बावरे लिख तो नहीं डाला कहीं अपना पतन ?.......रे पथिक..
संतुलन का खेल केवल यह जगत व्यवहार है,
साध लें तो नव-सृजन वरना कुटिल संघार है,
मनस वाचन कर्म में हो ऐक्य, निश्छल भावना-
सूत्र सद्आधार सम देता सदा विस्तार है..
बन्धनों से रुद्ध प्रतिपल क्यों रहे आवागमन ?
मुक्ति के उच्छ्वास से चल आज लिख ले उन्नयन...... रे पथिक..
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया प्राची जी , स्व की खोज में ( साधना मे ) जाने के पहले की की जाने वाली पूरी तैयारी आपने इस गीत के माध्यम से करा दी है , क्या बात है , पूरी किताब चंद लाइनों में आ गई है ॥ हार्दिक बधाइयाँ और साधुवाद इस गीत के लिये ॥
वासना के जाल में आबद्ध हर इक श्वास से,
बावरे लिख तो नहीं डाला कहीं अपना पतन ? -- ये दो लाइनें भुलाये नहीं भूलेंगी ॥
आदरणीया प्राची जी ..बेहतरीन दिमाग को नया चिंतन देता गीत ,,इस गीत को बार पढ़ा अच्छा लगा ..ये गीत यदि रचना के रचनाकार से किसी मंच पर सुनने को मिले तो ये वाकई श्रोताओं को बरबस ही बाँधने का दमखम रखता है ..आपको इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
ऐ पथिक रुक जा, ठहर जा,आज कर कुछ आंकलन ,बाँच गठरी कर्म की ...........! बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियाँ ! सुन्दर रचना हेतु साधुवाद ,माननीया डा. प्राची सिंह जी !
आपका गीत मानव को आत्मलीन्ता से अन्तर्निरीक्षणात्मक बनने को प्रेरित ही नहीं करता,
साधन और मार्ग की ओर संकेत भी करता है। हार्दिक बधाई।
वाह वाह बहुत अच्छी रचना मंच को देने के लिये बधाई
सुंदर भाव ....सुंदर रचना ...सादर
रे पथिक, रुक जा! ठहर जा! आज कर कुछ आकलन
बाँच गठरी कर्म की औ’ झाँक अपना संचयन
आ० प्राची जी
आप सदैव मनोरम गीत लिखती हैं i यह गीत भी अप्रतिम है i मुझे 'आँकलन' शब्द सही नहीं लग रहा i यह आकलन होना चाहिये iआँकना एक अलग शब्द है i आकलन उससे बिलकुल अलग है i दूसरा 'संघार ' की जगह 'सहार' सही होगा i सम्भवतः टाइप त्रुटि हो . सादर .
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