सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...
नन्हें पर हैं, पर भोला मन
नभ छू ले करता अभिलाषा,
कंटीले तारों की जकड़न
देगी केवल हाथ हताशा,
अन्धकार नें बरबस नोचे परियों के भी पंख सुनहरे...
सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...
सपनों को मंज़ूर हुआ कब
ढुलक आँख से झरझर बहना,
हँसकर स्वीकृत किया उन्होंने
सीपी में मोती बन रहना,
सागर ने अपने सीने में राज़ छुपाए हैं कुछ गहरे...
सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे ...
जुगनू की लौ बने सितारा
जंग अँधेरे से जारी है,
दृढ़ आधार मिले सपनों को
कण-कण इसकी तैयारी है,
स्याह अमावस जगमग कर दें, चीरें अन्धकार के पहरे...
सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सपनों को मंज़ूर नहीं पर
ढुलक आँख से झरझर बहना,
हँसकर स्वीकृत उन्हें हमेशा
मोती बन सीपी में रहना,
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण, आदरणीय सुश्री डॉo प्राची सिंह जी, बधाई, सादर।
आ० गिरिराज जी,आपने एक दम सही पहचाना जंग का बिंदु बिलकुल नहीं दिखा इस कारण मात्रा साधने का मशवरा दे बैठी उस वक़्त थोडा जल्दी में भी थी |
आदरणीया प्राची जी , बहुत मन भावन गीत रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
मुझे लगता है , आप -- जंग अँधेरे से जारी है , कहना चाह रहीं है , जिसे आ. राजेश जी , जग अँधेरे से जारी है , पढ़ गईं है , इसी लिये एक मात्रा कम गिन रहीं हैं , और अँधियारा करने की सलाह दे रहीं है , क्या सच है ? बताइयेगा ।
इस सुन्दर गीत पर आपको हार्दिक बधाई आ.Dr.Prachi Singh जी |
वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर भाव ///हार्दिक बधाई स्वीकारें |
महनीया प्राची जी
आप देर से ब्लॉग पर आती है पर जब आती है तो छा जाती हैं .क्या सुन्दर गीत रचा है ---पहले जुगनू की बात फिर सपने की बात और अंत में अन्धकार से लड़ने की बात . आ० राजेश जी बड़ी विज्ञ और जानकार हैं पर यहाँ जो विकल्प उन्होंने सुझाया है वह् गीत की आत्मा से न्याय कर पायेगा इसमें मुझे संदेह् है , मैं दीदी के विकल्प का सम्मान करते हुए उनसे छमा चाहते हुए कहना चाहूँगा की मेरे विचार से आपने जो लिखा है वही अधिकु उपयुक्त है -------------- स्याह अमावस जगमग कर दें --- यहाँ दें के स्थान पर दे उपयक्त है पर यह टाईप त्रुटि हो सकती है. इस कविता के लिया आपको बहुत बहुत बधायी. सादर .
सपनों को मंज़ूर नहीं पर
ढुलक आँख से झरझर बहना,
हँसकर स्वीकृत उन्हें हमेशा
मोती बन सीपी में रहना,
सागर ने अपने सीने में राज़ छुपाए हैं कुछ गहरे...
सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे ...
वाह आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी वाह … बहुत ही मासूम,सुंदर और गहन भावों को अभिव्यक्त करता प्यारा सा गीत .... हार्दिक बधाई बधाई स्वीकार करें आदरणीया जी।
बहुत सुन्दर गीत हुआ है आ० प्राची जी! हार्दिक बधाई!
सादर!
मनमोहक मुखड़ा लेकर बहुत सुन्दर गीत लिखा है प्रिय प्राची जी ,बहुत बहुत बधाई ,अंतिम बंद में ---जंग अँधेरे से जारी है,की जगह ---जग अँधियारे से ज़ारी है करें तो लय बेहतर बन रही है मेरे ख़याल से .
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