(१)
तुम्हारा शरीर
रेशमी ऊन से बुना हुआ
सबसे मुलायम स्वेटर है
मेरा प्यार उस सिरे की तलाश है
जिसे पकड़कर खींचने पर
तुम्हारा शरीर धीरे धीरे अस्तित्वहीन हो जाएगा
और मिल सकेंगे हमारे प्राण
(२)
तुम्हारे होंठ
ओलों की तरह गिरते हैं मेरे बदन पर
जहाँ जहाँ छूते हैं
ठंडक और दर्द का अहसास एक साथ होता है
फिर तुम्हारे प्यार की माइक्रोवेव
इतनी तेजी से गर्म करती है मेरा ख़ून
कि मेरा अस्तित्व कार की विंडस्क्रीन की तरह
एक पल में टूटकर बिखर जाता है
(३)
तुम्हारे प्यार की बारिश
मेरे आसपास के वातावरण में ही नहीं
मेरे फेफड़ों में भी नमी की मात्रा बढ़ा देती है
हरा रंग बगीचे में ही नहीं
मेरी आँखों में भी उग आता है
कविताएँ कागज़ पर ही नहीं
मेरी त्वचा पर भी उभरने लगती हैं
बूदों की चोट तुम्हारे मुक्कों जैसी है
मेरा तन मन भीतर तक गुदगुदा उठता है
(४)
तुम्हारा प्यार
विकिरण की तरह समा जाता है मुझमें
और बदल देता है मेरी आत्मा की संरचना
आत्मा को कैंसर नहीं होता
(५)
प्यार में
मेरे शरीर का हार्मोन
तुम्हारे शरीर में बनता है
और तुम्हारे शरीर का हार्मोन
मेरे शरीर में
इस तरह न तुम स्त्री रह जाती हो
न मैं पुरुष
हम दोनों प्रेमी बन जाते हैं
(६)
पहली बारिश में
हवा अपनी अशुद्धियों को भी मिला देती है
प्रेम की पहली बारिश में मत भीगना
उसे दिल की खिड़की खोलकर देखना
जी भर जाने तक
आँख भर आने तक
(७)
प्रेम अगर शराब नहीं है
तो गंगाजल भी नहीं है
प्रेम इन दोनों का सही अनुपात है
जो पीनेवाले की सहनशीलता पर निर्भर है
------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आ. सौरभ पांडेय जी। स्नेह बना रहे
बहुत बहुत शुक्रिया आ. Santlal Karun जी
आ. Vijai Shanker जी। पहली कविता में हुई त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद।
दूसरी कविता में ठंड और दर्द एक साथ इसलिए रखे गये हैं क्योंकि सामान्यतया ठंड दर्द के अहसास को कम कर देती है। कहीं चोट लगी हो तो उस पर बर्फ़ रखकर दर्द कम किया जा सकता है। पर ये विशेष अवस्था है जहाँ दोनों एक साथ उपस्थित हैं।
‘माइक्रोवेव ओवेन’ की हीट नियंत्रित होती है ‘माइक्रोवेव’ की नहीं। जर्क हीट से भी होता है विशेषकर काँच या इसके जैसे पदार्थों पर। इस संबंध में विकिपीडिया का ये आर्टिकिल पढ़ सकते हैं, http://en.wikipedia.org/wiki/Thermal_shock
प्यार और कविता तो हमेशा अपरिभाषित रहे हैं। यही इनका सौन्दर्य है।
शुक्रिया आ. jyotsna Kapil जी
बहुत बहुत शुक्रिया आ. Shyam Narain Verma जी
अनुभूत भावनाओं को प्रासंगिक बिम्ब मिले हैं. आपका यह वैशिष्ट्य मुझे सदा रोमांचित करता रहा है. इस बार भी मैं अपने अनुसार खूब ले रहा हूँ.
शुभ-शुभ
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, आप ने इस कविता में आज-कल की ताज़ी-टटकी, मौलिक संवेदनाओं तथा वर्तमान तन-मन, घर-बाहर के साथ चल रहे विज्ञानपरक अभिव्यंजक बिम्बों प्रयोग किया है | अपनी इस नवीनता के कारण यह कविता अधिक आकर्षित करती है-- हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर |
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