For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(१)

 

तुम्हारा शरीर

रेशमी ऊन से बुना हुआ

सबसे मुलायम स्वेटर है

 

मेरा प्यार उस सिरे की तलाश है

जिसे पकड़कर खींचने पर

तुम्हारा शरीर धीरे धीरे अस्तित्वहीन हो जाएगा

और मिल सकेंगे हमारे प्राण

 

(२)

 

तुम्हारे होंठ

ओलों की तरह गिरते हैं मेरे बदन पर

जहाँ जहाँ छूते हैं

ठंडक और दर्द का अहसास एक साथ होता है

 

फिर तुम्हारे प्यार की माइक्रोवेव

इतनी तेजी से गर्म करती है मेरा ख़ून

कि मेरा अस्तित्व कार की विंडस्क्रीन की तरह

एक पल में टूटकर बिखर जाता है

 

(३)

 

तुम्हारे प्यार की बारिश

मेरे आसपास के वातावरण में ही नहीं

मेरे फेफड़ों में भी नमी की मात्रा बढ़ा देती है

 

हरा रंग बगीचे में ही नहीं

मेरी आँखों में भी उग आता है

 

कविताएँ कागज़ पर ही नहीं

मेरी त्वचा पर भी उभरने लगती हैं

 

बूदों की चोट तुम्हारे मुक्कों जैसी है

मेरा तन मन भीतर तक गुदगुदा उठता है

(४)

 

तुम्हारा प्यार

विकिरण की तरह समा जाता है मुझमें

और बदल देता है मेरी आत्मा की संरचना

 

आत्मा को कैंसर नहीं होता

 

(५)

 

प्यार में

मेरे शरीर का हार्मोन

तुम्हारे शरीर में बनता है

और तुम्हारे शरीर का हार्मोन

मेरे शरीर में

 

इस तरह न तुम स्त्री रह जाती हो

न मैं पुरुष

हम दोनों प्रेमी बन जाते हैं

 

(६)

 

पहली बारिश में

हवा अपनी अशुद्धियों को भी मिला देती है

 

प्रेम की पहली बारिश में मत भीगना

उसे दिल की खिड़की खोलकर देखना

जी भर जाने तक

आँख भर आने तक

 

(७)

प्रेम अगर शराब नहीं है

तो गंगाजल भी नहीं है

 

प्रेम इन दोनों का सही अनुपात है

जो पीनेवाले की सहनशीलता पर निर्भर है

------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

Views: 543

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2015 at 7:33pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आ. सौरभ पांडेय जी। स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2015 at 7:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. Santlal Karun जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2015 at 7:32pm

आ. Vijai Shanker जी। पहली कविता में हुई त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद।

दूसरी कविता में ठंड और दर्द एक साथ इसलिए रखे गये हैं क्योंकि सामान्यतया ठंड दर्द के अहसास को कम कर देती है। कहीं चोट लगी हो तो उस पर बर्फ़ रखकर दर्द कम किया जा सकता है। पर ये विशेष अवस्था है जहाँ दोनों एक साथ उपस्थित हैं।

‘माइक्रोवेव ओवेन’ की हीट नियंत्रित होती है ‘माइक्रोवेव’ की नहीं। जर्क हीट से भी होता है विशेषकर काँच या इसके जैसे पदार्थों पर। इस संबंध में विकिपीडिया का ये आर्टिकिल पढ़ सकते हैं, http://en.wikipedia.org/wiki/Thermal_shock

प्यार और कविता तो हमेशा अपरिभाषित रहे हैं। यही इनका सौन्दर्य है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2015 at 7:23pm

शुक्रिया आ. jyotsna Kapil जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2015 at 7:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. Shyam Narain Verma  जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 11:47pm

अनुभूत भावनाओं को प्रासंगिक बिम्ब मिले हैं. आपका यह वैशिष्ट्य मुझे सदा रोमांचित करता रहा है. इस बार भी मैं अपने अनुसार खूब ले रहा हूँ.
शुभ-शुभ

Comment by Santlal Karun on May 7, 2015 at 8:21pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, आप ने इस कविता में आज-कल की ताज़ी-टटकी, मौलिक संवेदनाओं तथा वर्तमान तन-मन, घर-बाहर के साथ चल रहे विज्ञानपरक अभिव्यंजक बिम्बों प्रयोग किया है | अपनी इस नवीनता के कारण यह कविता अधिक आकर्षित करती है-- हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !   

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 6, 2015 at 7:30pm
तुम्हारा शरीर
रेशमी ऊन से बुना हुआ
सबसे मुलायम स्वेटर है. ---------> ये लाइन अच्छी है।

मेरा प्यार उस सिरे की तलाश है. ---------> प्यार यूं भी बिगाड़ता है , क्या ?
जिसे पकड़कर खींचने पर
तुम धीरे धीरे अस्तित्वहीन हो जाओगी ---------> क्यों ऊन तो रह जाएगा , फिर अस्तित्वहीन कैसे ? …… और फिर मुलायम स्वेटर की तारीफ़ क्यों ?

(२)

तुम्हारे होंठ
ओलों की तरह गिरते हैं मेरे बदन पर
जहाँ जहाँ छूते हैं
ठंडक और दर्द का अहसास एक साथ होता है. ---------> ? ?

फिर तुम्हारे प्यार की माइक्रोवेव
इतनी तेजी से गर्म करती है मुझे
कि मेरा अस्तित्व कार की विंडस्क्रीन की तरह
एक पल में टूटकर बिखर जाता है. ------------------> माइक्रोवेव की हीट संतुलित होती है , हाँ अनियंत्रित हो तभी कुछ जल सकता है , जहां तक मुझे समझ है
विंडस्क्रीन जर्क से टूट कर बिखरता है , अन्यथा चटख जाता है,

प्रयास अच्छा है। क्योंकि प्यार में सोंचा कुछ भी जा सकता है, उस पर कोई रोक नहीं है। सादर।
Comment by jyotsna Kapil on May 6, 2015 at 5:50pm
बहुत सुन्दर सृजन।बधाई स्वीकार करें
Comment by Shyam Narain Verma on May 6, 2015 at 5:40pm
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service