2122/ 2122/ 2122/212
है कहाँ पहचान तेरी सादगी को क्या हुआ
शोखियों को क्या हुआ तेरी हँसी को क्या हुआ
मुब्तला खुदगर्ज़ियों में हो गये जज़्बात सब
क्या कहूँ अब आजकल की दोस्ती को क्या हुआ
रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं
रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ
अपनी हस्ती को मिटाता जा रहा है बेखिरद
किसको फुरसत सोचने की आदमी को क्या हुआ
सुब्ह पहले सी नहीं मौसम भी पहले सा नहीं
हो गई बोझिल हवायें ताज़गी को क्या हुआ
नर्मियाँ पहले सी अब तेरी शुआओं में नहीं
ये बता ऐ चाँद तेरी रौशनी को क्या हुआ
टूटती ही जा रही है डोर अब उम्मीद की
ये नहीं मालूम मेरी पुख़्तगी को क्या हुआ
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल हुई है , क्या बात है सभी अशआर बहुत खूब हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
नर्मियाँ पहले सी अब तेरी शुआओं में नहीं
ये बता ऐ चाँद तेरी रौशनी को क्या हुआ -- लाजवाब शे र , ढेरों बधाइयाँ ॥
अच्छी गज़ल पढ़ कर बहुत आनंद आया। बधाई।
आदरणीय शिज्जू जी ..एक से बढ़कर एक शेर ...इस बेहतरीन ग़ज़ल के हर शेर के लिए दिल से दाद ..हार्दिक बधाई के साथ
बेहतरीन शेर सभी ....बधाई .....सादर
रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं
रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ
क्या बात..वाह वाह वाह
बहुत खूब ..ढेर सी शुभकामनाएँ
आदरणीय शिज्जु भाई जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए ...
आजकल आप कमाल की गज़लें कह रहे है और मेरी कलम अचानक रुक गई है
सादर
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