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है कहाँ पहचान तेरी सादगी को क्या हुआ- शिज्जु शकूर

2122/ 2122/ 2122/212

है कहाँ पहचान तेरी सादगी को क्या हुआ

शोखियों को क्या हुआ तेरी हँसी को क्या हुआ

 

मुब्तला खुदगर्ज़ियों में हो गये जज़्बात सब

क्या कहूँ अब आजकल की दोस्ती को क्या हुआ

 

रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं

रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ

 

अपनी हस्ती को मिटाता जा रहा है बेखिरद

किसको फुरसत सोचने की आदमी को क्या हुआ

 

सुब्ह पहले सी नहीं मौसम भी पहले सा नहीं

हो गई बोझिल हवायें ताज़गी को क्या हुआ

 

नर्मियाँ पहले सी अब तेरी शुआओं में नहीं

ये बता ऐ चाँद तेरी रौशनी को क्या हुआ

 

टूटती ही जा रही है डोर अब उम्मीद की

ये नहीं मालूम मेरी पुख़्तगी को क्या हुआ

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Mala Jha on May 13, 2015 at 1:46pm
बहुत खूब!!
रास्ते भी थम गए हैं,मंज़िलें भी खो गयीं
रुक गयी इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ!
एक से बढ़कर एक शेर के लिए बधाई आदरणीय शकूर जी।
Comment by kanta roy on May 13, 2015 at 1:45pm
वाह !!! आदरणीय शिज्जू शकूर जी ...... क्या खूब गजल कही है आपने ........शेरों मे खोये हुए पहचान ढुंढने लगे है हम अब .....बहुत ही उम्दा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 8:21pm

आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल हुई है , क्या बात है सभी अशआर बहुत खूब हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
नर्मियाँ पहले सी अब तेरी शुआओं में नहीं
ये बता ऐ चाँद तेरी रौशनी को क्या हुआ -- लाजवाब शे र , ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by shree suneel on May 12, 2015 at 6:08pm
सुब्ह पहले सी नहीं मौसम भी पहले सा नहीं
हो गई बोझिल हवायें ताज़गी को क्या हुआ/
बहुत ख़ूब आदरणीय.. बधाई
Comment by vijay nikore on May 12, 2015 at 4:53pm

 अच्छी गज़ल पढ़ कर बहुत आनंद आया। बधाई।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 12, 2015 at 2:55pm

आदरणीय शिज्जू जी ..एक से बढ़कर एक शेर ...इस बेहतरीन ग़ज़ल के हर शेर के लिए दिल से दाद ..हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 12, 2015 at 10:33am

बेहतरीन शेर सभी ....बधाई .....सादर 

रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं

रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2015 at 10:32am

क्या बात..वाह वाह वाह 
बहुत खूब ..ढेर सी शुभकामनाएँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 12, 2015 at 4:17am

आदरणीय शिज्जु  भाई जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए ...

आजकल आप कमाल की गज़लें कह रहे है और मेरी कलम अचानक रुक गई है 

सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 11, 2015 at 10:44pm
रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं
रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ
सुंदर ग़ज़ल , बधाई, आदरणीय शिज्जु शकूर जी, सादर।

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