१२१ २२ १२१ २२ यूं कतरा कतरा शराब पीकर हैं जिन्दा अब तक जनाब पीकर सवाल मुश्किल थे जिन्दगी के मगर दिए सब जवाब पीकर ये मय लगी कडवी सच के जैसी न कह सका मैं ख़राब पीकर पहाड़ सीने पे दर्दो गम के नहीं रहा कोई दवाब पीकर जिन्हें मयस्सर न रोटियाँ थीं वो बन गए थे नवाब पीकर था खौफ आँखों में डूबने का हटाया रुख से नकाब पीकर बिना पिए ही था जो क़यामत मचल उठा वो शबाब पीकर मौलिक व अप्रकाशित |
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आदरणीय वीनस जी ..आपकी प्रतिक्रिया से मुझे हमेशा ही नया सीखने को मिलता है रचना पर आपकी प्रतिक्रिया और मार्गदर्शन के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर
नहीं रहा कोई दवाब पीकर
इस मिसरे के अतिरिक्त पूरी ग़ज़ल बेहतर हुयी है ...... कोई को २२, १२, २१ तीन तरह से बाँधा जा सकता है आपने २ मात्रा में बाँध लिया है
आदरणीय श्री सुनील जी ..रचना पर आपकी उर्जा देती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सादर
आदरणीय केवल भाई जी रचना आपको पसंद आयी ..आपके इन शब्दों से मेरा उत्साह बढ़ा है ..सादर धन्वाद के साथ
आदरणीय समर कबीर जी .गलती से दवाब लिख गया आदरणीय सौरभ सर और आदरणीय वीनस जी भी मुझे कई बार इस तरह की गलतियों के लिए सचेत कर चुके हैं क्षमा प्रार्थी हूँ इस ज़ल्दबाजी के लिए ..कभी यदि आगे ऐसी भूल हो जाए तो आप मुझे इसी तरह सचेत करियेगा ..आपके मार्गदर्शन और प्रतिक्रिया के लिए पुनः धन्यवाद सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब आप सही कह रहे हैं दबाव की जगह गलती से दवाब हो गया ,,मशविरे के लिए हार्दिक धन्यवाद रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए आपको धन्यवाद सादर प्रणाम के साथ
आ0 आशुतोष भाई जी, गज़ल अच्छी लगी. दिली दाद कुबूल करे. सादर
आदरनीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आ. समर भाई जी सही कह रहे हैं शायद आप दबाव कहना चाह रहे हैं चौथे शे र में म देख लीजियेगा ॥
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