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पछतावा (लघुकथा )

"बाबा आप अकेले यहाँ क्यों बैठे हैं, चलिए आपको आपके घर छोड़ दूँ | "
बुजुर्ग बोले:

"बेटा जुग जुग जियो तुम्हारे माँ -बाप का समय बड़ा अच्छा जायेगा | और तुम्हारा समय तो बड़ा सुखमय होगा |"
"आप ज्योतिषी हैं क्या बाबा |"
हंसते हुय बाबा बोले - "समय ज्योतिषी बना देता हैं | गैरों के लिय जो इतनी चिंता रखे वह संस्कारी व्यक्ति दुखित कभी नही होता | " आशीष में दोनों हाथ उठ गये |
"मतलब बाबा ? मैं समझा नहीं | "
"मतलब बेटा मेरा समय आ गया | अपने माँ बाप के समय में मैं समझा नहीं कि मेरा भी एक न एक दिन तो यही समय आएगा | समझा होता तो ये समय ना आता |" नजरे धरती पर गड़ा दी कह | 

.

सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by annapurna bajpai on May 15, 2015 at 7:02pm

सही संदेश देती लघु कथा बधाई आपको 

Comment by aman kumar on May 15, 2015 at 10:26am

समसामयिक समस्या पर आधारित लेखन ही सच्चे अर्थ मे लेखन होता है आप धन्य है !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 15, 2015 at 2:41am

कल आज और कल में विचरती सुन्दर सन्देश देती सफल लघुकथा 

समय सब सिखा देता है. समय रहते न चेते तो हाथ रह जाता है सिर्फ पछतावा 

बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर आदरणीया सविता जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 15, 2015 at 12:09am

सच कहा..समय ही है जो सब कुछ सिखा देता है. बहुत बढ़िया सन्देश, आदरणीया सविता जी. हार्दिक बधाई

Comment by savitamishra on May 14, 2015 at 10:48pm

सादर आभार आपका पाण्डेय भैया

Comment by Shubhranshu Pandey on May 14, 2015 at 9:58pm

आदरणीया सविता जी, सुन्दर कथा.

भविष्य के द्वार भूतकाल के गर्त में होते हैं. समझ आते आते वर्तमान खिसकता जाता है और हम अपने आप को कोसने के अलावे ज्यादा नहीं कर सकते और दूसरो को सुधरने की  सलाह भर देते हैं..

सादर.

Comment by savitamishra on May 14, 2015 at 9:33pm

आभार आप सभी का

Comment by kanta roy on May 14, 2015 at 4:49pm
बहुत सुंदर रचना आदरणीया सविता जी .... सार्थक लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें
Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on May 14, 2015 at 3:53pm

सविता जी! भारतीय नैतिक मूल्यों को पुष्ट करने वाली रचना के लिये सहृदय बधाई... सादर!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 14, 2015 at 1:46pm

''समय ज्योतिषी बना देता हैं''  सुन्दर लघुकथा हार्दिक बधाई आदरणीया सविता मिश्रा जी!

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