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सपनों के झिलमिल से जुगनू (एक गीत).............डॉ० प्राची सिंह

सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...

 

नन्हें पर हैं, पर भोला मन

नभ छू ले करता अभिलाषा,

कंटीले तारों की जकड़न

देगी केवल हाथ हताशा,

अन्धकार नें बरबस नोचे परियों के भी पंख सुनहरे...

सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...

 

सपनों को मंज़ूर हुआ कब 

ढुलक आँख से झरझर बहना,

हँसकर स्वीकृत किया उन्होंने 

सीपी में मोती बन रहना,

सागर ने अपने सीने में राज़ छुपाए हैं कुछ गहरे...

सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे ...

जुगनू की लौ बने सितारा

जंग अँधेरे से जारी है,

दृढ़ आधार मिले सपनों को

कण-कण इसकी तैयारी है,

स्याह अमावस जगमग कर दें, चीरें अन्धकार के पहरे...

सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Manan Kumar singh on June 5, 2015 at 9:51am

'नन्हें पर हैं, पर भोला मन..........  

सपनों को मंज़ूर नहीं पर

ढुलक आँख से झरझर बहना....'      मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति आ॰ प्राचीजी, बधाई आपको, सादर। 

Comment by मनोज अहसास on June 4, 2015 at 11:54pm
नमन
Comment by विनय कुमार on June 4, 2015 at 11:17pm

सुन्दर गीत आदरणीया प्राची सिंह जी , बहुत बहुत बधाई ..

Comment by Samar kabeer on June 4, 2015 at 10:56pm
मोहतरमा प्राची सिंह जी,आदाब,लगता है यह गीत दिल की गहराईयों से निकला है ,बहुत अच्छे शब्द दिये हैं आपने अपने ख़यालों को, गीत सुनकर ऐसा लगा 'इक थकन सी उतर गई दिल से,शब्द दर शब्द दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by umesh katara on June 4, 2015 at 9:45pm
बहुत अच्छी रचना वाहा

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