१२२ १२२ १२२ १२
मिला कीमती वक़्त जाया न कर
बुरी बात होंठों पे लाया न कर
बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट
तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर
कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़
किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर
अदब से कहेगा सुनेंगे सभी
सुलगती जुबाँ से सुनाया न कर
तवा गर्म है सब्र से काम ले
इन हाथों को अपने जलाया न कर
सही है अगर तू दिखा तो सबूत
हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर
सभी खोलता “राज’ पैकर तेरा
कोई बात दिल में छुपाया न कर
बहुत चोट लगती तुझे क्या पता
किसी को नजर से गिराया न कर
बुलंदी का रस्ता जहाँ बंद हो
उधर पाँव अपने बढ़ाया न कर
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Comment
विनय कुमार सिंह जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका .
आ० वीनस जी, आपकी सराहना ने आश्वस्त किया आपका परामर्श स्वागत योग्य है जिस भाव से मैं कहना चाह रही थी वही भाव बरकरार रहेगा फज़ा करने से भी अच्छा शब्द सुझाया बहुत बहुत शुक्रिया आपका.
राम अश्रेय जी .आपका बहुत- बहुत शुक्रिया.
आ० डॉ० गोपाल भाई जी ,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ दिल से आभार |
आदरणीया राजेश जी , बेहतरीन गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आदरणीय वीनस भाई के सुझाये परिवर्तन से शे र और बढ़िया हो जायेगा ।
// बहुत चोट लगती तुझे क्या पता
किसी को नजर से गिराया न कर // , वाह , वाह । बेहतरीन पंक्तियाँ , सादर बधाई क़ुबूल करें आदरणीया..
बहुत शानदार ग़ज़ल है ...
तवा की जगह फज़ा करके देखें ... शायद अधिक पसंद आये
बधाई हो बहुत अच्छी रचना मन को छु लिया है
आ० दीदी
बहुत उम्दा गजल . बेहतरीन सादर .
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