For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले


कब समझा है कोई वक़्त का इशारा
बन गए हैं ख़ुदा , उसे समझने वाले


ख्वाहिशें तो रखते है ज़माने में सब
और ही होते हैं ,उन्हें पूरा करने वाले


ग़ुम है बदगुमानी में ,ये सारी दुनिया
मिलते हैं कहाँ ,अब सच लिखने वाले


तलाश थी सिर्फ , एक फूल की विनय
हज़ार मिले राह में, कांटे रखने वाले !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 11:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी , कुछ सुधार किया है , कृपया बताएं ठीक है --
वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले
कब समझा है कोई वक़्त का इशारा
बन गए हैं ख़ुदा , उसे समझने वाले
ख्वाहिशें तो रखते है ज़माने में सब
और ही होते हैं ,उन्हें पूरा करने वाले
ग़ुम है बदगुमानी में ,ये सारी दुनिया
मिलते हैं कहाँ ,अब सच लिखने वाले
वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले !!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 10:44pm

परम आदरणीय गोपाल सर! ने गजल की दृष्टि से मूल बातें बता ही दी है, जिनमे आ. आपने काफिया और रदीफ़ के दोष को मतले में दुरुस्त भी कर लिया है..काफिया 'अने' पर बधने से  'दिखाने' में 'आने' काफिया में लेना दोष पूर्ण होगा! बाकी बात रह गयी है वज्न/बहर की आ० मंच पर गज़ल पर बहुत ही शानदार लेख मौजूद है उनका लाभ लें! आ० rajesh kumari ने सच कहा है भाव पक्ष बहुत सुन्दर है,इस रचना को ग़ज़ल में ढालेंगें तो एक नायाब ग़ज़ल बनेगी!

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 9:53pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी , कोशिश करूँगा कि सीख सकूँ । जैसा की आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ने कहा है कि // प्रथम शेर के दोनों मिस्रो में समान काफिया और रदीफ़ अनिवार्य है //, तो मैं अगर प्रथम शेर को कुछ यूँ लिखूं तो क्या उचित होगा --
वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले
कृपया मार्गदर्शन करें , सादर धन्यवाद..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 14, 2015 at 9:46pm

विनय कुमार जी ,इस रचना को ग़ज़ल में ढालोगे तो एक नायाब ग़ज़ल बनेगी भाव पक्ष बहुत सुन्दर है बस मापनी पर कसना है उसके लिए आप ओबिओ में ही ग़ज़ल की कक्षा ज्वाइन करें आप धीरे धीरे सब सीख जायेंगे आपने काफिया अने  तथा वाले रदीफ़ अच्छे से निबाहया किन्तु पहला मतला नहीं लिखा -मतले की ऊपर की  पंक्ति में भी काफिया व् रदीफ़ आता है जैसे आपने नीचे की पंक्ति में लिया है ---बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले

खैर इस कोशिश के लिए बधाई व् शुभकामनायें 

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 9:28pm

बहुत प्रसन्नता हो रही है मुझे की मेरे इस प्रथम प्रयास को आपने समय दिया और मुझे इसकी खामियाँ बतायीं । अभी मुझे इन चीजों का ज्ञान नहीं है , सीखने का प्रयास करूँगा । बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आपका स्नेह मिलता रहे.. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2015 at 9:22pm

आ० विनय जी

प्रथम शेर के दोनों मिस्रो में समान काफिया और रदीफ़ अनिवार्य है  . जैसे-  जमाने ने मारे ज वां  कैसे कैसे  

                                                                                                   जमीं खा गयी आस मां कैसे कैसे

आपने बहर नहीं लिखी इससे शिल्प की परख नहीं की जा सकी

रचना का भाव पक्ष सबल है . प्रयास जारी रहना चाहिए . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . निर्वाण

दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन…See More
16 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service