For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122  2122 2122 2  

फाईलातुन  फाईलातुन  फाईलातुन फा  

हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते

आप भी  है जिद  में मेरे दर नहीं आते

 

बेबसी  महबूब  की किस भाँति  समझाऊँ  

आज भी  उनको   मेरे  चश्मेतर नहीं भाते

 

जिन्दगी  बीती  है उनकी  सूफियाना सी   

मस्त तो है  रहते   साजो पर नहीं गाते

 

इश्क  में हूँ  जांबलब  मेरा  भरोसा क्या

फ़िक्र उनको  कब है  चारागर  नहीं लाते

 

एक साया उसका   बांटी  जिन्दगी  हमने  

अन्यथा जीवन में  कुछ भी कर नहीं पाते

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 1313

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 11:27pm
"मेरे दीदए तर भी उनको तो नहीं भाते"
Comment by somesh kumar on June 18, 2015 at 10:08pm

आपकी काव्य रचना पहले ही आनन्द रस और भाव से भर देतीं थी |गजलों में भी कुछ ऐसा ही सामर्थ्य जान पड़ता है |

अर्थपूर्ण और कामयाब गज़ल पर बधाई

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 7:19pm
हाहाहा जी बिल्कुल| सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:19pm

आ० अनुज भंडारी जी

मेरी गलतिया दुरुस्त भी कर दिया करें , सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:18pm

राहुल जी

आप भी सीख रहे है !

खूब गुजरेगी जब मिलकर बैठेंगे दीवाने दो . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:16pm

आ० समीर कबीर साहिब

आपने चश्मेतर के बारे में बताकर मेरा ज्ञान बढाया . कृपया  इस मिसरे को दुरुस्त भी करने की कृपा करें . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 7:14pm

आ० वीनस जी

आपके मशवरे से याद आया कि  गजल में पढ़ने के लिहाज से  मात्राएँ तय होती हैं , सादर .

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 6:54pm
आदरणीय गोपाल जी मैं भी सीख ही रहा हुँ मैंनें यह सवाल भी अपनी सीख के लिए ही किया था
बेबसी महबूब को किस भाँति समझाऊँ।
क्या तभी समझेंगे जब तक मर नहीं जाते।।
मैनें कुछ इस तरह कोशिश की है सादर
Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 6:21pm
चश्म-ए-तर,स्त्रिलिंग है ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 5:44pm

राहुल जी

 माफ़ करिएगा गजल  मैं अभी सीख रहा हूँ --------- आज भी मेरे उनको चश्मेतर नहीं भाते ----- क्या यह सही रहेगा , यदि सही न हो तो इस्लाह कर दें  सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service