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एक ग़ज़ल ग़ालिब की ज़मीन में

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन

एक मिसरे में इधर मैंने मेरा दिल बाँधा
दूसरे में तेरे रुख़्सार का ये तिल बाँधा

यूँ लगा जैसे हुवा सारा ज़माना रौशन
मैंने दौरान-ए-ग़ज़ल जब महे कामिल बाँधा

ख़ून आँखों से टपकता है तो हैरत कैसी
तूने क्यूँ कस के बदन से ये सलासिल बाँधा

मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा

उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर में साइल बाँधा

जिस क़दर दूँ मेरे दुश्मन को दुआ कम है "समर"
उसने क़ातिल को मेरे मद्दे मुक़ाबिल बाँधा

-------

महे कामिल:- पूरा चाँद

सलासिल :- बेड़ियाँ,ज़ंजीरें,सलासिल उर्दू का ऐसा शब्द है जिसे एक वचन और बहु वचन दोनों तरीक़े से ले सकते हैं जैसे "महासिल" ये महसूल की जमा है लेकिन इसे भी एक वचन और बहु वचन दोनों तरीक़ों से लिया जा सकता है ।

मुनकशिफ़ :- खुलना

मद्दे मुक़ाबिल :- आमने सामने
-------

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1480

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 19, 2015 at 7:43am

बहुत ख़ूब आ. समर कबीर सर.... शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 11:35pm
जनाब महर्षि त्रिपाठी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,आपने सफ़ीना का "अर्थ" पुछा है,ये शब्द अरबी भाषा का है,इसके चार अर्थ होते हैं,

(1)कश्ती
(2)जहाज़
(3)बयाज़
(4)नोटबुक
Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:35pm

आ.Samar kabeer जी ,,कृपया सफीना का अर्थ बताये |

Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:31pm

जिस क़दर दूँ मेरे दुश्मन को दुआ कम है "समर"
उसने क़ातिल को मेरे मद्दे मुक़ाबिल बाँधा,,,,,,,,,,,,,ढेरों दाद आपको आ. Samar kabeer जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 5:52pm

आ० समर साहिब

क्या बुलंद गजल कही है i मायने बताकर आपने बहुत अच्छा किया . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 2:34pm

आदरनीय समर भाई , आपकी इस उस्तादाना ग़ज़ल पर सिर्फ वाह वाह करते  रहे पढते तक ॥ दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:36pm

उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर में साइल बाँधा

वाह वा जनाब क्या कहने

Comment by मनोज अहसास on June 18, 2015 at 12:41pm
बहुत खूब बाँधा
सर
बधाई
सादर
Comment by दिनेश कुमार on June 18, 2015 at 12:39pm

दिल से दाद क़ुबूल करें, सर.

Comment by दिनेश कुमार on June 18, 2015 at 12:37pm

बहुत ख़ूब, आदरणीय, कमाल किया है आप ने। वाह वाह वाह

मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा.... क्या कहने सर... वाह वाह

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