फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन
एक मिसरे में इधर मैंने मेरा दिल बाँधा
दूसरे में तेरे रुख़्सार का ये तिल बाँधा
यूँ लगा जैसे हुवा सारा ज़माना रौशन
मैंने दौरान-ए-ग़ज़ल जब महे कामिल बाँधा
ख़ून आँखों से टपकता है तो हैरत कैसी
तूने क्यूँ कस के बदन से ये सलासिल बाँधा
मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा
उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर में साइल बाँधा
जिस क़दर दूँ मेरे दुश्मन को दुआ कम है "समर"
उसने क़ातिल को मेरे मद्दे मुक़ाबिल बाँधा
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महे कामिल:- पूरा चाँद
सलासिल :- बेड़ियाँ,ज़ंजीरें,सलासिल उर्दू का ऐसा शब्द है जिसे एक वचन और बहु वचन दोनों तरीक़े से ले सकते हैं जैसे "महासिल" ये महसूल की जमा है लेकिन इसे भी एक वचन और बहु वचन दोनों तरीक़ों से लिया जा सकता है ।
मुनकशिफ़ :- खुलना
मद्दे मुक़ाबिल :- आमने सामने
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"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत ख़ूब आ. समर कबीर सर.... शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई
आ.Samar kabeer जी ,,कृपया सफीना का अर्थ बताये |
जिस क़दर दूँ मेरे दुश्मन को दुआ कम है "समर"
उसने क़ातिल को मेरे मद्दे मुक़ाबिल बाँधा,,,,,,,,,,,,,ढेरों दाद आपको आ. Samar kabeer जी |
आ० समर साहिब
क्या बुलंद गजल कही है i मायने बताकर आपने बहुत अच्छा किया . सादर .
आदरनीय समर भाई , आपकी इस उस्तादाना ग़ज़ल पर सिर्फ वाह वाह करते रहे पढते तक ॥ दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥
उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर में साइल बाँधा
वाह वा जनाब क्या कहने
दिल से दाद क़ुबूल करें, सर.
बहुत ख़ूब, आदरणीय, कमाल किया है आप ने। वाह वाह वाह
मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा.... क्या कहने सर... वाह वाह
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