"क्या हुआ माते ?"
"कुछ नहीं हुआ लक्ष्मण, तुम अयोध्या में ही रहोगे।"
"मुझ से कोई भूल हो गई क्या ?"
"भूल तुमसे नहीं श्री राम से हो गई थी, जिसे सुधारने का प्रयास कर रही हूँ।"
"भूल और मर्यादा पुरुषोत्तम से ? मैं कुछ समझा नहीं माते।"
"उर्मिला के हृदय में झाँकोगे तो समझ जाओगे लक्ष्मण।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,उर्मिला का दुःख समझने और उसे ( एक बार ) मुक्त करने के प्रयास के लिए बधाई.
राम का बनवास सिर्फ राम के लिए सजा नहीं थी , दशरथ, कौशल्या, लक्ष्मण, उर्मिला, सुमित्रा और जाने किस किस के लिए सजा थी , साथ में
सभी अयोध्यावासियों के लिए भी थी. .... सजा तो कैकयी के लिए भी थी, …… राम - कथा का यह सन्देश भी है कि किसी निर्दोष को जब सजा मिलती है, तो वास्तव में वह बहुत बहुत लोगों के लिए होती है ,स्वयं षणयन्त्रकारी के लिए खुद भी.
सादर.
पुरुष-सत्तात्मक वैचारिकता उन क्लिष्ट मनोभावों तथा उन दशाओं को नहीं समझ पाती जिनसे गुजरते हुए एक स्त्री को दैनिक रूप से ’बर्ताव’ निभाना होता है. यह अवश्य है, कि ऐसी भावदशाओं के परिदृश्यों को एक समय से ललित शब्द एवं वर्णन मिलते रहे हैं - ’आगे-आगे राम चन्नन.. पाछू-पाछू डोलिया.. तासे पाछू लछमन हो भाय..’
किन्तु, उर्मिला जैसी एक अर्द्धांगिनी, जिसके लिए सीता की तरह स्वयं पर अधिकार जता पाना तक संभव नहीं हुआ --नहीं हो पाया-- चौदह वर्ष तपती रही. हा !
उर्मिला का यह आत्मकथन कितना कचोट कर बहिराया होगा -
कमल, तुम्हारा दिन है, और कुमुद, यामिनी तुम्हारी है,
कोई हताश क्यों हो, आती सब की समान वारी है। ........ (’साकेत’ से ; मैथिली शरण गुप्त)
इसी तपन को मैंने भी अस्फुट पंक्तियाँ देने का प्रयास किया है, आदरणीय -
नजरों वाली धनुष-कटारी
गुनती रात अकेली सारी
निठुर न कोई उनके जैसा
किसके आगे किस्मत हारी..
किससे बोलूँ
किन शब्दों में..
क्या मेरे हालात ?
ओ बेला, कुछ तो कहो !
स्त्री की दशा को एक स्त्री ही समझ सकती है यदि वस्तुतः समझना चाहे. इस बिम्बात्मक लघुकथा की जीवनी स्त्री-शक्ति के आत्माभिमान से अभिसिंचित एवं अनुप्राणित होती है.
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराजभाईजी.
सादर
चन्द पंक्तियो में आधा ‘साकेत’ लिख दिया आपने। सुन्दर, सटीक, लघुकथा। बधाई स्वीकारें आदरणीय योगराज जी
ग़ज़ब !
आदरणीय पुनः आता हूँ.
आदरणीय विनोद खनगवाल जी से सादर -
"उर्मिला के हृदय में झाँकेंगे तो सब समझ जाएँगे, विनोद खनगवाल ! "
आदरणीय योगराज जी लघुकथा कुछ समझ नहीं आई आखिर कहना क्या चाहते हैं?
उर्मिला के हृदय में झांकोगे तो समझ जाओगे। सर बहुत ही सुंदर सरल शब्दों में आसानी से कथा कह दी आपने । सादर
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