संशोधित दोहे :
कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान
पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल
रह जाएगा सब यहीं , काहे करे मलाल
काया माया का भला , काहे करे गुमान
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान
ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़
चुका न पाया दूध का , जीवन में वो क़र्ज़
मानव दानव बन गया, किया खूब संहार
पाप कर्म से कर लिया, पापी ने शृंगार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी दोहों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय लडीवाला जी आपका कथन बिलकुल सही है। मुझसे ही पढ़ कर लिखने में भूल हुई। हार्दिक आभार। आदरणीय सौरभ जी तो सदा बधाई के पात्र हैं ही … उन्हीं के मार्गदर्शन से ये संभव हो पाया है। हार्दिक आभार सर।
भाई श्री सुशील सरना जी "विषम चरणान्त में १२ या २१ होना चाहिए।" क्षमा करे ये गलत है । मेरी टिप्पणी पुनः देखे "विषम चरण में १२ और सम चरण में यति २१ पर होनी चाहिए" । धन्यवाद के पात्र है,तो आदरणीय सौरभ जी है मेरी जिनकी प्रेरणा से मैंने विस्तृत टिप्पणी की । सादर
आदरणीय सुशील सर, सुन्दर दोहावली हेतु हार्दिक बधाई
आदरणीय डॉ गोपाल जी दोहों पर आपकी आत्मीय उपस्थिति और लय सबंधी सुझाव का हार्दिक आभार। भविष्य में इस बिन्दुं को ध्यान में रखूंगा। कई बात सृजन में कोई पंक्ति अगर सोच में बैठ जाती है तो फिर उसी में ही फेर बदल होता रहता है बस इसमें भी ऐसा हुआ मात्र गठन और पंक्ति … इस सुझाव हेतु आपका हार्दिक आभार। अपना स्नेह बनाये रखें।
आदरणीय लडीवाला जी दोहों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। आयेगा'' में नज़र चूक गयी -विषम चरणान्त में १२ या २१ होना चाहिए। क्षमा -ये छोटी छोटी त्रुटियाँ ही निरंतर विकास की और अग्रसर करती हैं। इस हेतु आपका हार्दिक आभार। प्रस्तुति में आपके आंशिक सुधारों ने उसे और भी आकर्षित बना दिया है … वाह … आभार। आप गुणीजनों का सहयोग रहा तो मेरा प्रयास दिन प्रतिदिन निखरता ही रहेगा। आपकी गहन समीक्षा का हार्दिक आभार।
आ० सरना जी
एक बात और कहूँगा .कभी कभी मात्र विन्यास सही होता है पर लय नहीं साध पाती . लय साधना भी आवश्यक है - जैसे - बिन मान नहीं शान इसमें वैसे तो मात्रा विन्यास 2+३+३+३ मगर खींच खांच कर इसे 4+4+३मान जा सकता है i यही खींच तान लय बाधित होने का कारण है -------- इसे अगर ------ मान नहीं बिन शान ----कर दे तो विन्यास ३+३+2+३ सही हो जाएगा . सादर .
बहुत खूब आदरणीय !! .. वाह वाह !
जी आदरणीय सौरभ जी, यहाँ आद गोपाल नारायण जी संक्षिप्त में शिल्प साधने के बात समझा चुके थे, फिर भी संशोधन में "पैसा काम न आयेगा" जैसी त्रुटी श्री सरना जी से रह गई | विषम चरण का अंत 1 2 से और सम हरण का 21 से होअया चाहिए | इन्ही दोहों पर मेरा सुझावात्मक प्रयास, सादर -
कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान - कर्म बिना मेवा नहीं, मान बिना क्या शान,
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान विधवा सी लगती सदा, बिना सुरों के तान |
पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल - काम करें पैसा नहीं, जब आ जाए काल,
रह जाएगा सब यहीं , काहे करे मलाल रह जाता है सब यही, करते तभी मलाल |
काया माया का भला , काहे करे गुमान - काया माया का भला, काहे करे गुमान,
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान इस नश्वर संसार में, क्षरभर भर का अभिमान |
ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़ - ममता को बिसरा रहा, भूल रहा हर फर्ज,
चुका न पाया दूध का , जीवन में वो क़र्ज़ चुका न पायें दूध का, जीवन में हम कर्ज |
मानव दानव बन गया, किया खूब संहार - मानव जब दानव बने, करे खूब संहार
पाप कर्म से कर लिया, पापी ने शृंगार पाप कर्म से कर रहे, पापी सब श्रंगार |
अनुशंसा के लिए धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी. लेकिन दोहा से सम्बन्धित वैधानिक बातें हम पिछले कई वर्षों से करते आ रहे हैं. अब विधान सम्बन्धी बातें हर उस सदस्य की ओर आनी चाहिये जिन्हें इन विधाओं पर कई-कई महीनों (वर्षों) के अभ्यास का अनुभव हो चला है.
सादर
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