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दूजे में हमको जो अक्सर दोष दिखाई देता है
अपने में तो वो खूबी का कोष दिखाई देता है
उथला पथली हो लहरों की, चाहे समझो अँगडाई
हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है
कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर
लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है
जिसके मन में खोट नहीं है उसको लगता सब अच्छा
पतझड़ में भी जीवन का उद्धोष दिखाई देता है
खुशियाँ हो तो नैनों की झीलों में है उगता सूरज
बदली छाई हो तो बिम्ब प्रदोष दिखाई देता है
जीवन की आपा धापी में खुश रहना वो सीख गये
थोड़ा पाकर भी जिनमे संतोष दिखाई देता है
ओढ़े आखर तानों के या कोष्ठ भरे फरमानों के
पर बेचारा कागज़ तो निर्दोष दिखाई देता है
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत बढिया ग़जल दी...सादर नमस्ते
बड़े ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं आदरणीय राजेश कुमारी जी, मिथिलेश जी ने जो सुझाव दिया है उसके बाद तो ये अच्छी ग़ज़ल हो जाएगी। दाद कुबूल करें।
दुःख का पल भी जीने का उद्घोष दिखाई देता है --ये ठीक लग रहा है बहुत बहुत आभार भैया ,पर अभी प्रतीक्षा कर रही हूँ और प्रतिक्रिया आने दो
मिथिलेश भैया ,आपको ये हिंदी ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ|आपका कहना सही है काफिया कठिन था क्यूंकि आप्शन अधिक नहीं थे ये ६ शेर भी बड़ी माथा पच्ची से बने |भैया जो शब्द आपने सुझाये मेरे मन में भी दौड़ कर आये थे किन्तु यूज क्यूँ नहीं किये ...आपने रदीफ़ पर गौर किया ----दिखाई देता है --अतः घोष, उद्दघोष आदि शब्दों को सुनाई देता है के सन्दर्भ में ले सकते थे
अब आप्शन केवल पोष बचता था नेट पर कई जगह पौष भी लिखा है पोष भी लिखा है अतः कन्फ्यूज हूँ की ये चलेगा या नहीं यदि बिलकुल नहीं चलेगा तो पोष शब्द को लेकर ही मिसरा चेंज करुँगी आप भी कुछ सुझाइये रचना पर विद्वद्जनों की प्रतीक्षा है .देखें क्या कहते हैं |
आदित्य कुमार जी,प्रस्तुति आपको पसंद आई दिल से आभारी हूँ
आदरणीया राजेश दीदी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है, कठिन काफिया लेकर आपने बेहतरीन अशआर निकाले है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
दूजे में हमको जो अक्सर दोष दिखाई देता है
अपने में तो वो खूबी का कोष दिखाई देता है........... बहुत शानदार मतला
उथला पथली हो लहरों की, चाहे हो अँगड़ाईयाँ
हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है........... उथला पथली के स्थान पर उथल पुथल सी/ आपा धापी किया जा सकता है.
कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर
लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है........... वाह वाह बढ़िया शेर
जिसके मन में खोट नहीं है उसको लगता सब अच्छा
ज्येष्ठ आषाढ़ महीने में भी पोष दिखाई देता है............... पौष को पोष करने पर शंका है क्योकि इसका अर्थ पोषण और पुष्टि के अधिक निकट है (अभी घोष/उद्घोष काफिया बचा है दीदी उसका यहाँ प्रयोग हो सकता है. यथा
जिसके मन में खोट नहीं है उसको लगता सब अच्छा
दुःख का पल भी जीवन का उद्घोष दिखाई देता है
खुशियाँ हो तो नैनों की झीलों में है उगता सूरज
बदली छाई हो तो बिम्ब प्रदोष दिखाई देता है ...... बढ़िया शेर
ओढ़े आखर तानों के या कोष्ठ भरे फरमानों के
पर बेचारा कागज़ तो निर्दोष दिखाई देता है ....... वाह वाह बहुत बेहतरीन शेर हुआ है दिल से दाद कुबूल फरमाएं.
सादर
बहुत बढ़िया रचना ! बधाई
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