For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हर औरत में सुरसा भी है, और सभी में सीता है ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   22   22   2   --- 

पेडों पर इल्जाम लगा वो ख़ुद की खातिर जीता है

सोच रहा हूँ मैं सागर क्या अपना पानी पीता है ?

 

झूठा- सच्चा , सही ग़लत ये सब बे पर की बातें हैं

दिखे फाइदा, सच को मोड़ो जिसको जहाँ सुभीता है

 

सभी उँगलियाँ अलग हो गईं अहम बीच में आने से

चुल्लू में कुछ रुका नहीं , जो रीता था, वो रीता है 

 

शब्द कोश बस रट लेने से भाव नहीं पैदा होता

व्यर्थ हाथ में रख लेना क़ुरआन बाइबिल गीता है

 

हर इच्छायें अजगर जैसी लिपटी रहती हैं मन से

और समय का पंजा झपटे जैसे कोई चीता है

 

हर आदम में कृष्ण- कंस है ,  राम जहाँ है रावण भी

हर औरत में सुरसा भी है,  और सभी में सीता है

 

जोंक नुमा किरदार कहूँ या अमर बेल इसको बोलूँ 

जो पर जीवी जिससे लिपटा उसका खूँ ही पीता है

*************************************************

गिरिराज भंडारी

Views: 728

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 10:39pm
वाह सर बधाई
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 8:09pm
सोच रहा हूँ मैं सागर क्या अपना पानी पीता है ?
दिखे फाइदा, सच को मोड़ो जिसको जहाँ सुभीता है
चुल्लू में कुछ रुका नहीं , जो रीता था, वो रीता है
व्यर्थ हाथ में रख लेना क़ुरआन बाइबिल गीता है
और समय का पंजा झपटे जैसे कोई चीता है
हर औरत में सुरसा भी है, और सभी में सीता है
जो पर जीवी जिससे लिपटा उसका खूँ ही पीता है
बहुत ही सुन्दर, सारगर्भित , सोचने को मजबूर करती प्रस्तुति, आदरनीय गिरिराज भंडारी जी , बहुत बहुत बधाई इन पंक्तियों पर, सादर।
Comment by दिनेश कुमार on July 16, 2015 at 4:24pm
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज सर जी। मुबारकबाद।
यह बह्र मेरे लिए थोड़ी नई है सर, इसके बारे में थोड़ा खुलासा करें सर, कि कौन कौन सी छूट इसमें मिल सकतीं हैं? अभी तक मैंने इस पर कोशिश नहीं की है।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2015 at 4:07pm

वाह आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल करें

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 16, 2015 at 3:40pm

ग़जब .....बहुत उम्दा ग़ज़ल ....दाद कबूल करें जनाब .....सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service