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ग़ज़ल - कैसे बच्चों में सादगी होगी -- ( गिरिराज भंडारी )

2122    1212     22 /112

सुर्मई, शाम हो रही होगी

रात दस्तक भी दे चुकी होगी

 

रात के हक़ में गर अंधेरा है

सुब्ह के हक़ में रोशनी होगी

 

दिल ठहर, बस नज़र मिला उनसे

मिल गईं गर, तो बात भी होगी

 

जिस तरह जी रही थी अब तक तू

ज़िन्दगी सच में थक गई होगी

 

बंद आखें थी , होठ चुप चुप थे

गुफ्तगू किस तरह हुई होगी

 

जागी रातों में जो रुलाती थी

वो मेरी रूहे शाइरी होगी 

 

माँ-पिता गर सजे धजे इतना

कैसे बच्चों में सादगी होगी

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on July 22, 2015 at 6:18pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,वाह वाह वाह,छोटी बह्र में कमाल की ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 10:28am
बहुत ही उम्दा गजल हुई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2015 at 6:50am

आदरणीय श्री सुनील भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2015 at 6:49am

आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया । कुछ शेर आप की पसंदगी को संतुष्ट कर पाये जान कर खुशी हुई । आपका पुनः आभार ।

Comment by shree suneel on July 22, 2015 at 12:35am
बंद आखें थीं , होठ चुप चुप थे
गुफ्तगू किस तरह हुई होगी...... .. . बहुत ख़ूब .
आदरणीय गिरिराज सर जी, शानदार ग़ज़ल हुई बहुत - बहुत बधाई आपको.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 11:15am

आदरणीय गिरिराज सर, छोटी बह्र में शानदार ग़ज़ल हुई है, शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

मतला बेहतरीन हुआ है और इन अशआर पर दिल से दाद हाज़िर है-

दिल ठहर, बस नज़र मिला उनसे

मिल गईं गर, तो बात भी होगी

 

जिस तरह जी रही थी अब तक तू

ज़िन्दगी सच में थक गई होगी

 

जागी रातों में जो रुलाती थी

वो मेरी रूहे शाइरी होगी 

इस बेहतरीन और शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु धन्यवाद, आपकी ग़ज़लों से सदैव लिखने के लिए प्रेरित होता हूँ.

कृपया ध्यान दे...

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