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सुर्मई, शाम हो रही होगी
रात दस्तक भी दे चुकी होगी
रात के हक़ में गर अंधेरा है
सुब्ह के हक़ में रोशनी होगी
दिल ठहर, बस नज़र मिला उनसे
मिल गईं गर, तो बात भी होगी
जिस तरह जी रही थी अब तक तू
ज़िन्दगी सच में थक गई होगी
बंद आखें थी , होठ चुप चुप थे
गुफ्तगू किस तरह हुई होगी
जागी रातों में जो रुलाती थी
वो मेरी रूहे शाइरी होगी
माँ-पिता गर सजे धजे इतना
कैसे बच्चों में सादगी होगी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्री सुनील भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया । कुछ शेर आप की पसंदगी को संतुष्ट कर पाये जान कर खुशी हुई । आपका पुनः आभार ।
आदरणीय गिरिराज सर, छोटी बह्र में शानदार ग़ज़ल हुई है, शेर दर शेर दाद हाज़िर है
मतला बेहतरीन हुआ है और इन अशआर पर दिल से दाद हाज़िर है-
दिल ठहर, बस नज़र मिला उनसे
मिल गईं गर, तो बात भी होगी
जिस तरह जी रही थी अब तक तू
ज़िन्दगी सच में थक गई होगी
जागी रातों में जो रुलाती थी
वो मेरी रूहे शाइरी होगी
इस बेहतरीन और शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु धन्यवाद, आपकी ग़ज़लों से सदैव लिखने के लिए प्रेरित होता हूँ.
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