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" क्यों मारा उसको , अब तो कोई रिश्ता नहीं बचा था तुम्हारे बीच ?
" एक रिश्ता तो था ही , नफ़रत का | मेरी बहन को जिन्दा जलाने के बाद किसी और से शादी करने जा रहा था वो "|
" पर उसके लिए तो कोर्ट से मिली सजा उसने भुगत ली थी , फिर क्यों ?
" किसी और बहन का जलना .., वो वाक्य पूरा नहीं कर पाया !
.
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by pratibha pande on July 22, 2015 at 8:11pm

जब क़ानून अपना काम सही तरह से और समय पे नहीं करता तो आम आदमी इसी तरह  कानून अपने हाथ में लेने लगता है ,बात कडवी है पर सच्ची है I बधाई इस सशक्त रचना के लिए आ० विनय जी 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 22, 2015 at 4:46pm

आदरणीय विनय जी इस संवेदनशील प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by विनय कुमार on July 21, 2015 at 5:36pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया नीता कसार जी , आपने लघुकथा की संवेदना को समझा | सादर धन्यवाद..

Comment by Nita Kasar on July 21, 2015 at 5:15pm
बेहद संवेदनशील कथा है काश एेसे लोग पीड़ा का अनुमान लगा पाते बधाई आपको आदरणीय विनय कुमार सिंह जी

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