आज के अखबार में छपी एक छोटी सी खबर ने उसे बेचैन कर रखा था| खबर थी कि ज़ल्लाद नहीं होने से कई खूंख्वार सज़ायाफ्ता फाँसी पर नहीं चढ़ाये जा रहे| उसे पिछली कई घटनाएँ याद आने लगीं, उसके शहर में घटे उस जघन्य बलात्कार के अपराध में मौत की सजा पाये अपराधी अभी भी कालकोठरी में पड़े थे, कुछ आतंकवादी भी जिन्हें बहुत पहले ही इस दुनियाँ से चले जाना चाहिए था, वो भी किसी अप्रत्याशित रिहाई की आस लगाये पड़े हुए थे|
अचानक उसे उस ज़ल्लाद का चैहरा भी याद आ गया जिसे उसने कभी अखबार में देखा था और उसके चेहरे को देखकर घरवालों की घृणित प्रतिक्रिया भी याद आ गयी|
स्नातक पास वो आज भी नौकरी के लिए तमाम जगह प्रयासरत था लेकिन शायद सिफारिश की कमी उसके आड़े आ रही थी| वो फैसला नहीं कर पा रहा था कि क्या करे, तभी एक और खबर पर उसकी नज़र पड़ी " पैसे के प्रलोभन से तमाम नौजवान आतंकवादी गतिविधियों में शामिल", और उसके अंदर चलता द्वन्द समाप्त हो गया| जब नौजवान पैसे के लिए ऐसे जघन्य कामों में शामिल होने से नहीं कतरा रहे तो ऐसे खूंख्वार अपराधियों को मौत के घाट उतारने के लिए अगर उसे कुछ पैसे मिलते हैं तो इसमें गलत क्या है|
अब उसे उस जल्लाद का चेहरा बेहद धवल नज़र आ रहा था और उसने घरवालों की प्रतिक्रिया को नकार दिया था|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पाण्डेय जी
कसे हुए शिल्प के साथ बेरोजगारी विषय को अलग ही रंग में प्रस्तुत करती इस सशक्त कथा के लिए बधाई आदरणीय विनय कुमार जी ,
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेज वीर जी, सतविंदर कुमार जी और शेख शहज़ाद साहब
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी!बेहतरीन लघुकथा!
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर साहब और फूल सिंह साहब
अति सुन्दर रचना ........बधाई.....हो
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