For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जैसा बीज़ वैसी फ़सल ( लघुकथा )

"जानती है ? नया मेहमान आने वाला है सुनकर, माँ-बाबूजी कितने खुश हैं । "
"और आप ? "
" हाँ , माँ कह रही थीं , बड़ी भाभी की दोनों संतानें लड़कियाँ हैं, इसलिए बहू से कहना कि वह सिर्फ़ बेटा ही जने । "
"आपने क्या कहा ? '
"कहना क्या ? मैं माँ से अलग थोड़े हूँ , और तू भी माँ की इच्छा के विरूद्ध तो जाने से रही ।"
"सो तो है , पर माँ जी की इच्छा पूरी हो , उसकी जवाबदेही आपके ही हाथों में है । "
"मेरे हाथों में ? पागल हो गई है क्या ? '
"लो भई ! साइंस ग्रेजुएट हो । इतना भी नहीं जानते , फसल वही उगती है , जिसका बीज़ डाला जाता है ।अब सरसों बोकर गन्ना तो नहीं उगा सकते न ? "

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 838

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनोद खनगवाल on July 25, 2015 at 3:52pm

आदरणीया शशि बंसल जी, आपकी बात से सहमत हूँ लड़का या लड़की पैदा होने में दोनों ही जिम्मेदार नहीं होते हैं अगर उन दोनों में से किसी के हाथ में हो तो यह सृष्टि पता नहीं कब की समाप्त हो गई होती।
//"सो तो है, पर माँ जी की इच्छा पूरी हो, इसकी जवाबदेही आपके ही हाथों में है।"// स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि मैं भी लड़का ही चाहती हूँ या पैदा कर सकती हूँ लेकिन यह सब आपके हाथों में है। लघुकथा में लड़के की सोच रखने वाले पति और उसकी माँ पर कोई व्यंग्य किया गया होता जिससे उनको भी अपनी सोच पर सोचना पड़े तो कथा का रंग ही अलग होता जोकि कथा में स्पष्ट नहीं हो पाया है

Comment by shashi bansal goyal on July 25, 2015 at 2:26pm
आद0 विनोद जी हार्दिक आभार अमूल्य समय और प्रतिक्रिया देने हेतु । आपकी बात से सहमत हूँ कि लड़की फसल नहीं होती । मैने ऐसा कहा भी नहीं है ।अगर ये प्रकृति के हाथ में है तो पति का पत्नी पर बेटे के लिए दबाव डालना भी पूरी तरह गलत है ।यहां पत्नी ने बेटे की इच्छा को बढ़ावा नहीं दिया है बल्कि सरलता के साथ हास्यात्मक वातावरण में कहना चाहा है कि भाभी का उदहारण देकर उन्हें दोषी ठहराने के पहले एक बार सोचे कि क्या वाकई ये स्त्री पर निर्भर है कि उससे जैसा कहा जाये वो वैसी संतान को जन्म दे पाए । हर बार पुरुष और स्त्री भीबेटी को जन्म देने के लिए दोषी ठहराते रहे हैं इस बार पत्नी ने जताना चाहा हैकि तुम भी जिम्मेदार हो ।हालाँकि यथार्थ में दोनों ही जिम्मेदार नहीं है । रहा पढ़े लिखे होने की बात तो ऐसे हजारों लाखों उद्धरण मिल जायेंगे जिन्होंने ऐसा किया है । परसों ही पेपर में ऐसे 6-7 केस आये थे जिसमे पति ने या तो पत्नी को छोड़ दिया या बुरा बर्ताव किया । सादर ।
Comment by Shyam Narain Verma on July 25, 2015 at 12:53pm

आदरणीया शशि जी सुन्दर लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई |
सादर .............

Comment by Archana Tripathi on July 25, 2015 at 10:54am
बेहतरीन रचना ,शायद साइंस ग्रेजुएट भी इस बात को ना माने ।
बधाई आपको शशि बंसल जी
Comment by विनोद खनगवाल on July 25, 2015 at 10:41am
आदरणीया शशि बंसल जी, लघुकथा का मूल भाव लड़कियों को ठुकराने और लड़कों को अहमियत देने वाला ही बनकर रह गया है। इससे लड़कियों के प्रति सोच जस की तस बनी रह गई है।
//"लो भई ! साइंस ग्रेजुएट हो । इतना भी नहीं जानते , फसल वही उगती है , जिसका बीज़ डाला जाता है ।अब सरसों बोकर गन्ना तो नहीं उगा सकते न?"// साइंस का अच्छा उदाहरण देने की कोशिश की गई है लेकिन बीज कौन सा डलेगा यह सिर्फ प्रकृति के हाथों में है। यह कोई फसल तो है नहीं जिस चीज की खेती करनी है उसका निर्धारण हम स्वयं सकते हैं। लड़कियों की फसल से तुलना सही नहीं है लड़कियाँ कोई फसल नहीं होती हैं।
लघुकथा का अंत साइंस और सच्चाई के लिहाज कोसों दूर है जिससे कथा अपना संदेश स्पष्ट और सही दिशा में नहीं दे पा रही है।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 25, 2015 at 10:20am
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें शशि जी। ‘बीज’ संस्कृत से आया हुआ शब्द है इसमें ज के नीचे नुक़्ता नहीं लगेगा। देखिए मैं नुक़्ताचीनी करने लग गया। :)
Comment by kanta roy on July 25, 2015 at 8:29am
क्या खूब बात बनाई है बहू ने ! वाह ....!!!! शीर्षक को पूरे कथा के सार के रूप में बहुत खूब उतारा है आपने । हमेशा की तरह शानदार आदरणीया शशि जी .... बधाई
Comment by Pankaj Joshi on July 25, 2015 at 8:16am

बहुत सुंदर कथा आदरणीया जी , अब सरसों के बीज से गन्ना तो ना उगे है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 24, 2015 at 10:35pm

हा हा हा 

आदरणीया शशि जी आपने कमाल की लघुकथा लिखी है ... हलके फुल्के अंदाज़ में बहुत गहरी बात समझा दी. कुछ साइंस ग्रेजुएट्स भाई लोगो को ये कथा पढनी चाहिए.... नमन आपकी लेखनी को. दिल खुश हो गया आपकी कथा पढ़कर. इस सकारात्मक लघुकथा के लिए आपका बहुत आभार. लघुकथा के शिल्प को एक नया आयाम देती लघुकथा. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service