"जानती है ? नया मेहमान आने वाला है सुनकर, माँ-बाबूजी कितने खुश हैं । "
"और आप ? "
" हाँ , माँ कह रही थीं , बड़ी भाभी की दोनों संतानें लड़कियाँ हैं, इसलिए बहू से कहना कि वह सिर्फ़ बेटा ही जने । "
"आपने क्या कहा ? '
"कहना क्या ? मैं माँ से अलग थोड़े हूँ , और तू भी माँ की इच्छा के विरूद्ध तो जाने से रही ।"
"सो तो है , पर माँ जी की इच्छा पूरी हो , उसकी जवाबदेही आपके ही हाथों में है । "
"मेरे हाथों में ? पागल हो गई है क्या ? '
"लो भई ! साइंस ग्रेजुएट हो । इतना भी नहीं जानते , फसल वही उगती है , जिसका बीज़ डाला जाता है ।अब सरसों बोकर गन्ना तो नहीं उगा सकते न ? "
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया शशि बंसल जी, आपकी बात से सहमत हूँ लड़का या लड़की पैदा होने में दोनों ही जिम्मेदार नहीं होते हैं अगर उन दोनों में से किसी के हाथ में हो तो यह सृष्टि पता नहीं कब की समाप्त हो गई होती।
//"सो तो है, पर माँ जी की इच्छा पूरी हो, इसकी जवाबदेही आपके ही हाथों में है।"// स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि मैं भी लड़का ही चाहती हूँ या पैदा कर सकती हूँ लेकिन यह सब आपके हाथों में है। लघुकथा में लड़के की सोच रखने वाले पति और उसकी माँ पर कोई व्यंग्य किया गया होता जिससे उनको भी अपनी सोच पर सोचना पड़े तो कथा का रंग ही अलग होता जोकि कथा में स्पष्ट नहीं हो पाया है
आदरणीया शशि जी सुन्दर लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई |
सादर .............
बहुत सुंदर कथा आदरणीया जी , अब सरसों के बीज से गन्ना तो ना उगे है
हा हा हा
आदरणीया शशि जी आपने कमाल की लघुकथा लिखी है ... हलके फुल्के अंदाज़ में बहुत गहरी बात समझा दी. कुछ साइंस ग्रेजुएट्स भाई लोगो को ये कथा पढनी चाहिए.... नमन आपकी लेखनी को. दिल खुश हो गया आपकी कथा पढ़कर. इस सकारात्मक लघुकथा के लिए आपका बहुत आभार. लघुकथा के शिल्प को एक नया आयाम देती लघुकथा.
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