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इश्क़ मे बेहाल होकर इतना हासिल हो गया
तेरी आहट से यहाँ हर लम्हा महफ़िल हो गया
फैसला करना मुझे ये आज मुश्किल हो गया
दिल से मुझको गम मिला या गम से यूँ दिल हो गया
रात सी चादर लपेटे बर्फ से वो सामने
आखिरी लम्हा मेरा जीने के काबिल हो गया
यूँ तो उसने बेबसी के सब फ़साने लिख दिए
ये नहीं कह पाया कैसे खुद का कातिल हो गया
डबडबाया कुछ ज़रा फिर जज्ब सब कुछ हो गया
किस कदर महफूज़ उन झीलों का साहिल हो गया
हमने खुद को छल लिया या जग ने हमको छल लिया
नाज़ुकी पाने मे ये "अहसास" बिस्मिल हो गया
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय मनोज जी बहुत बहुत बधाई
बढ़िया ग़ज़ल हुई है ... बधाई, आदरणीय मनोज भाई
आरणीय मनोज जी
ग़ज़ल पर मुबारक बाद कुबूल करें
इश्क़ मे बेहाल होकर इतना हासिल हो गया
तेरी आहट से यहाँ हर लम्हा महफ़िल हो गया
फैसला करना मुझे ये आज मुश्किल हो गया
दिल से मुझको गम मिला या गम से यूँ दिल हो गया
हुस्ने मतला के प्रति आग्रह है तो मिसरा ए सानी को उला करके देखे और आपके मिसरा ए उला में फैसला करना पडा गो काम मुश्किल हो गया से बदल करे शेर पढ़े तो फैसले और मुश्किल अल्फ़ाज़ के बीच ''पड़ा'' की कैफियत आसानी से बयां हो सकती है
रात सी चादर लपेटे बर्फ से वो सामने
आखिरी लम्हा मेरा जीने के काबिल हो गया
यूँ तो उसने बेबसी के सब फ़साने लिख दिए
ये नहीं कह पाया कैसे खुद का कातिल हो गया
कह नहीं पाया कि कैसे खुद का कातिल हो गया इससे एक मात्रा तो गिराने से बच जाएगी
डबडबाया कुछ ज़रा फिर जज्ब सब कुछ हो गया
किस कदर महफूज़ उन झीलों का साहिल हो गया
डबडबाया और जैसे जज्ब सब कुछ आंख में ....से झील सी आखों का मंजर और साफ हो सकता है शायद इस शेर में आप आंख और आसूं की बात ही कर रहे है
हमने खुद को छल लिया या जग ने हमको छल लिया
नाज़ुकी पाने मे ये "अहसास" बिस्मिल हो गया
गिरती मात्राओं से लय में थोड़ी बाधा आ रही है ऐसा हमें लगा है
ग़जल अच्छी कही है । मुबारक ।
आदरणीय मनोज कुमार भाई , बढ़िया गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
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