For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुनियाद (लघुकथा)

''सुनो बंटी के पापा , काहे इतना विलाप करते हो। ''
''बंटी की माँ .... तुम्हें क्या पता ,पिता के जाने से मेरे जीवन का एक अध्याय ही समाप्त हो गया। ''
'' मैं आपके दुःख को समझ सकती हूँ। मुझे भी पिता जी के जाने का बहुत दुःख है लेकिन धीरज तो रखना पड़ेगा। आप यूँ ही विलाप करते रहेंगे तो उनकी आत्मा को चैन कहाँ मिलेगा। '' धर्मपत्नी ने ढाढस देते हुए कहा।
''वो तो ठीक है बंटी की माँ … लेकिन आज पिता के गुजर जाने से न केवल मेरे सिर से वटवृक्ष की छाया चली गयी बल्कि ऐसा लगता है मेरा जीवन की बुनियाद को सींचने वाली बुनियाद ही चली गयी।''

धर्मपत्नी के ढाढस भरे स्पर्श से आंसुओं ने आँखों का साथ छोड़ दिया।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 3, 2015 at 2:25pm

आदरणीय  Archana Tripathi  जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Archana Tripathi on August 3, 2015 at 8:25am
बेहतरीन लघुकथा ,माता-पिता के चले जाने के बाद वाकई में बुनियाद ना होने का अहसास होता हैं ।हार्दिक बधाई आपको सुशील सरना जी ।
Comment by Sushil Sarna on August 2, 2015 at 4:49pm

आदरणीय सौरभ सर लघु कथा के प्रयास पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। सर ''ऐसा लगता है मेरे  जीवन की बुनियाद को सींचने वाली बुनियाद ही चली गयी'' -- इस वाक्य से मेरा अभिप्राय ये था की मेरा पिता मेरे जीवन को सुसंस्कृत करने की बुनियाद थे वो क्या गए मेरे जीवन की बुनियाद को सुदृढ़ करने वाली बुनियाद (मेरे पिता) ही चली गयी। आपकी उपस्थिति का हार्दिक आभार सर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2015 at 3:07am

ऐसा लगता है मेरा जीवन की बुनियाद को सींचने वाली बुनियाद ही चली गयी -- इस वाक्य के क्या अर्थ हैं ? 

विधा पर इस कोशिश केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय सुशील सरनाजी..

 

Comment by Sushil Sarna on August 1, 2015 at 6:41pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 3:50pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service