''सुनो बंटी के पापा , काहे इतना विलाप करते हो। ''
''बंटी की माँ .... तुम्हें क्या पता ,पिता के जाने से मेरे जीवन का एक अध्याय ही समाप्त हो गया। ''
'' मैं आपके दुःख को समझ सकती हूँ। मुझे भी पिता जी के जाने का बहुत दुःख है लेकिन धीरज तो रखना पड़ेगा। आप यूँ ही विलाप करते रहेंगे तो उनकी आत्मा को चैन कहाँ मिलेगा। '' धर्मपत्नी ने ढाढस देते हुए कहा।
''वो तो ठीक है बंटी की माँ … लेकिन आज पिता के गुजर जाने से न केवल मेरे सिर से वटवृक्ष की छाया चली गयी बल्कि ऐसा लगता है मेरा जीवन की बुनियाद को सींचने वाली बुनियाद ही चली गयी।''
धर्मपत्नी के ढाढस भरे स्पर्श से आंसुओं ने आँखों का साथ छोड़ दिया।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Archana Tripathi जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सौरभ सर लघु कथा के प्रयास पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। सर ''ऐसा लगता है मेरे जीवन की बुनियाद को सींचने वाली बुनियाद ही चली गयी'' -- इस वाक्य से मेरा अभिप्राय ये था की मेरा पिता मेरे जीवन को सुसंस्कृत करने की बुनियाद थे वो क्या गए मेरे जीवन की बुनियाद को सुदृढ़ करने वाली बुनियाद (मेरे पिता) ही चली गयी। आपकी उपस्थिति का हार्दिक आभार सर।
ऐसा लगता है मेरा जीवन की बुनियाद को सींचने वाली बुनियाद ही चली गयी -- इस वाक्य के क्या अर्थ हैं ?
विधा पर इस कोशिश केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय सुशील सरनाजी..
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना सर, बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई.
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