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कुछ क्षणिकाएँ :.....

कुछ क्षणिकाएँ :
१.
कितना अद्भुत है
ये जीवन
कदम दर कदम
अग्रसर होता है
एक अज्ञात
संपूर्णता की तलाश में
और ब्रह्मलीन हो जाता है
एक अपूर्णता के साथ

२.
छुपाती रही
जिसकी मधु स्मृति को
अपने अंतस तल की गहराई में
वो खारी स्याही से 
कपोल पर ठहर
इक बूँद में
विरह व्यथा का
सागर लिख गया

३.
मैंने सौंप दिया
सर्वस्व अपना
जिसे अपना मान
छल गया वही
पावन प्रीत को
एक निष्ठुर स्वप्न तरह
बन कर अंजान

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 12:24pm

आदरणीय  shree suneel  जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 12:24pm

आदरणीय  rajesh kumari जी मेरे प्रयास को आत्मीय सम्मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by shree suneel on August 5, 2015 at 1:11am
आदरणीय सुशील सरना सर, गहरे भावों को समेटे इन क्षणिकाअों के लिए बधाई आपको.
'छुपाती रही
जिसकी मधु स्मृति को
अपने अंतस तल की गहराई में
वो खारी स्याही से
कपोल पर ठहर
इक बूँद में
विरह व्यथा का
सागर लिख गया'... ओह!

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Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 8:43pm

वाह वाह हर क्षणिका पर दिल से वाह  निकल रही है बहुत शानदार लिखा है आपने आ० सुशील सरना जी दिल से बधाई लीजिये 

Comment by Sushil Sarna on August 4, 2015 at 7:37pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी मेरे प्रयास को आत्मीय सम्मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 4, 2015 at 7:02pm

आदरणीय मोहन सेठी जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 4, 2015 at 5:30pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत शानदार क्षनिकाएं हुई है. पहली क्षणिका की गहराई और वैचारिक कथ्य  ने मुग्ध कर दिया. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई....// कितना अद्भुत है / ये जीवन / कदम दर कदम / अग्रसर होता है  / एक अज्ञात / संपूर्णता की तलाश में / और ब्रह्मलीन हो जाता है / एक अपूर्णता के साथ.

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 5:15pm

आदरणीय Sushil Sarna जी बहुत मार्मिक वर्णन ...हार्दिक बधाई 

वो खारी स्याही से 
कपोल पर ठहर 
इक बूँद में 
विरह व्यथा का 
सागर लिख गया

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