कुछ क्षणिकाएँ :
१.
कितना अद्भुत है
ये जीवन
कदम दर कदम
अग्रसर होता है
एक अज्ञात
संपूर्णता की तलाश में
और ब्रह्मलीन हो जाता है
एक अपूर्णता के साथ
२.
छुपाती रही
जिसकी मधु स्मृति को
अपने अंतस तल की गहराई में
वो खारी स्याही से
कपोल पर ठहर
इक बूँद में
विरह व्यथा का
सागर लिख गया
३.
मैंने सौंप दिया
सर्वस्व अपना
जिसे अपना मान
छल गया वही
पावन प्रीत को
एक निष्ठुर स्वप्न तरह
बन कर अंजान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय shree suneel जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय rajesh kumari जी मेरे प्रयास को आत्मीय सम्मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
वाह वाह हर क्षणिका पर दिल से वाह निकल रही है बहुत शानदार लिखा है आपने आ० सुशील सरना जी दिल से बधाई लीजिये
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी मेरे प्रयास को आत्मीय सम्मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय मोहन सेठी जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत शानदार क्षनिकाएं हुई है. पहली क्षणिका की गहराई और वैचारिक कथ्य ने मुग्ध कर दिया. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई....// कितना अद्भुत है / ये जीवन / कदम दर कदम / अग्रसर होता है / एक अज्ञात / संपूर्णता की तलाश में / और ब्रह्मलीन हो जाता है / एक अपूर्णता के साथ.
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