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होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या(ग़ज़ल 'राज')

2122   212  2122 1212  

सर फरोशों के लिए बंदिशे क्या हुदूद क्या

होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या

 

बांटता सबको बराबर न रखता कोई हिसाब    

इक  समन्दर के लिए मूल क्या और सूद क्या 

 

बूँद इक मोती बनी दूसरी ख़ाक में मिली                

सिलसिला है जीस्त का बूद है क्या नबूद क्या 

                        

जिन चिरागों की जबीं पर लिखी हुई हो तीरगी  

अर्श उनके वास्ते लाल, पीला, कबूद क्या 

 

उस अदालत में खुदा की लिखे फेंसले सभी    

हैं बराबर जुर्म सारे ठगी क्या रबूद क्या

 

दिल में जिनके प्यार का कोई मफ़्हूम ही नहीं

जुल्म कारों के लिए मिन्नतें क्या सुजूद क्या 

 

रबूद  =डकैती  

हुदूद =सीमा

बूद ओ नबूद =होना या न होना

कबूद =नीला/आसमानी  

सुजूद =सर झुकाकर प्रेयर करना

 मफ़्हूम=भाव/भावना  

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:12pm

हर्ष महाजन जी ,इस जर्रानवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:11pm

आ० मोहन सेठी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:10pm

आ० सुलभ अग्निहोत्री जी,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया .अमूमन मैं इतने क्लिष्ट शब्द ग़ज़लों में लेती नहीं हूँ बस किसी आयोजन के तहत इन शब्दों को लेना पड़ा इसी लिए नीचे शब्दों के अर्थ भी दिए |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:07pm

आ० गिरिराज जी,आपका तहे दिल से आभार आपने सच कहा हम हिंदी भाषा वालों के लिए ये काफिया वाकई कठिन है अदबी साहित्यिक इस्स्लाही ग्रुप में ये एक चुनौती भरा काफिया  दिया गया था जिसपर मैंने ये प्रयास किया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:04pm

आ० सुशील सरना जी,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ तहे दिल से शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हुआ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:03pm

मिथिलेश भैया,शुक्रगुजार हूँ कि आपको ग़ज़ल पसंद आई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:02pm

प्रतिभा पाण्डेय जी,आपका तहे दिल से आभार आपको ग़ज़ल पसंद आई.  

Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 5:42pm

आदरणीय rajesh kumari जी बेहद खूबसूरत ! उस से भी जियादा खूबसूरत कव्वाफी !! दिली दाद ...वसूल पाइयेगा !!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 5:29pm

आदरणीया rajesh kumari जी बहुत सुंदर ....बधाई 

सर फरोशों के लिए बंदिशे क्या हुदूद क्या

होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या

Comment by Sulabh Agnihotri on August 4, 2015 at 4:06pm

बहुत सुन्दर है आदरणीया - लेकिन हम हिन्दी वालों के लिए बड़ी कठिन है, नीचे माने देखने में तारतम्य टूट जाता है।

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