For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या(ग़ज़ल 'राज')

2122   212  2122 1212  

सर फरोशों के लिए बंदिशे क्या हुदूद क्या

होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या

 

बांटता सबको बराबर न रखता कोई हिसाब    

इक  समन्दर के लिए मूल क्या और सूद क्या 

 

बूँद इक मोती बनी दूसरी ख़ाक में मिली                

सिलसिला है जीस्त का बूद है क्या नबूद क्या 

                        

जिन चिरागों की जबीं पर लिखी हुई हो तीरगी  

अर्श उनके वास्ते लाल, पीला, कबूद क्या 

 

उस अदालत में खुदा की लिखे फेंसले सभी    

हैं बराबर जुर्म सारे ठगी क्या रबूद क्या

 

दिल में जिनके प्यार का कोई मफ़्हूम ही नहीं

जुल्म कारों के लिए मिन्नतें क्या सुजूद क्या 

 

रबूद  =डकैती  

हुदूद =सीमा

बूद ओ नबूद =होना या न होना

कबूद =नीला/आसमानी  

सुजूद =सर झुकाकर प्रेयर करना

 मफ़्हूम=भाव/भावना  

Views: 1249

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:12pm

हर्ष महाजन जी ,इस जर्रानवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:11pm

आ० मोहन सेठी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:10pm

आ० सुलभ अग्निहोत्री जी,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया .अमूमन मैं इतने क्लिष्ट शब्द ग़ज़लों में लेती नहीं हूँ बस किसी आयोजन के तहत इन शब्दों को लेना पड़ा इसी लिए नीचे शब्दों के अर्थ भी दिए |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:07pm

आ० गिरिराज जी,आपका तहे दिल से आभार आपने सच कहा हम हिंदी भाषा वालों के लिए ये काफिया वाकई कठिन है अदबी साहित्यिक इस्स्लाही ग्रुप में ये एक चुनौती भरा काफिया  दिया गया था जिसपर मैंने ये प्रयास किया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:04pm

आ० सुशील सरना जी,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ तहे दिल से शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हुआ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:03pm

मिथिलेश भैया,शुक्रगुजार हूँ कि आपको ग़ज़ल पसंद आई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 7:02pm

प्रतिभा पाण्डेय जी,आपका तहे दिल से आभार आपको ग़ज़ल पसंद आई.  

Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 5:42pm

आदरणीय rajesh kumari जी बेहद खूबसूरत ! उस से भी जियादा खूबसूरत कव्वाफी !! दिली दाद ...वसूल पाइयेगा !!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 5:29pm

आदरणीया rajesh kumari जी बहुत सुंदर ....बधाई 

सर फरोशों के लिए बंदिशे क्या हुदूद क्या

होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या

Comment by Sulabh Agnihotri on August 4, 2015 at 4:06pm

बहुत सुन्दर है आदरणीया - लेकिन हम हिन्दी वालों के लिए बड़ी कठिन है, नीचे माने देखने में तारतम्य टूट जाता है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service