भेड़िए जैसे झपटते बच्चे
गिद्ध जैसे ताकते हुए
कुत्तों की मानिंद
खाना छीनते हुए बच्चे
एक कूड़े के ढेर पर
मैंने देखे थे वो
भेड़िये ,गिद्ध और
कुत्ते जैसे बच्चे
इंसान का शेर या हाथी
जैसा होना सुहाता है
किन्तु भूख जब उसे भेड़िया,
गिद्ध या कुत्ता बना देती है
और जब शिकार बचपन हो
तो आँखें शर्म से झुक जाती हैं
तब इस असमान बंटवारे पर
लज्जा आती है ,घृणा होती है
किसी ने तो खाना
बस फैंक दिया था
ज्यादा था उसके पास
या स्वाद नहीं था
या फिर बस यूँ ही
और कुछ के पास
विकल्प ही नहीं है
खाने के ज्यादा या
बेस्वाद होने का
उनके लिए पेट में
धधकती आग एक प्रश्न है
जिसे किसी भी तरह
बस बुझाया जाना है
फिर वह कूड़े में
पड़ी जूठन ही क्यों न हो
अबाध संवेदनहीन प्रचुरता
या कि अनवधि हीनता
दोनों ही मनुष्य को
भेड़िया, गिद्ध और
कुत्ता बना डालते है
मात्र सन्दर्भ अलग होते हैं I
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद मिथिलेश जी
आभार शिल्पी जी
आदरणीया तनूजा उप्रेती जी आपने बहुत मार्मिक रचना प्रस्तुत की है. ऐसे दृश्य भीतर तक हिला देते है किन्तु यही यथार्थ है. इस संवेदनशील प्रस्तुति हेतु धन्यवाद ...
आभार गिरिराज जी ,आभार मैडम ,आभार लक्षमण जी
इंसान का शेर या हाथी
जैसा होना सुहाता है
किन्तु भूख जब उसे भेड़िया,
गिद्ध या कुत्ता बना देती है
और जब शिकार बचपन हो
तो आँखें शर्म से झुक जाती हैं
आ0 तनूजा जी, इस मार्मिक प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई.
आदरणीया तनूजा जी , सत्य पर मार्मिक प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
बहुत मार्मिक प्रस्तुति ..ये द्रश्य जो खुद मैंने देहली रेलवे स्टेशन पर देखा था एक चाय की दुकान के सामने डस्टबिन से निकाल कर बचाकुचा खाना खाते हुए बच्चों को ...सजीव हो उठा...अंत में ये पंक्तियाँ --
अबाध संवेदनहीन प्रचुरता
या कि अनवधि हीनता
दोनों ही मनुष्य को
भेड़िया, गिद्ध और
कुत्ता बना डालते है
मात्र सन्दर्भ अलग होते हैं I
प्रस्तुति को ऊँचाई पर ले जाती हैं \बहुत बहुत बधाई प्रिय तनूजा जी ,इस प्रस्तुति पर |
आभार आनंद जी ,आभार प्रतिभा जी
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