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आदरणीय , बहुत अच्छा प्रयास हो रहा है , आपको हार्दिक बधाई । बह्र का उल्लेख कर दिया करें , ताकि पाठको को आसानी हो । आ. मिथिलेश भाई जी की सहाल उचित है , खयाल कीजियेगा ।
आदरणीय पंकज जी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने कुछ कमी रह गई थी उसके बारे में पहले ही चर्चा हो चुकी है । आभार
हसरतों की नाव सागर के हवाले छोड़ना। एक मांझी की ख़ता मुश्किल है बतलाना यहाँ।।....... बहुत खूब कही है ये बात भी आदरणीय पंकज कुमार जी ..... बधाई हो
आदरणीय पंकज जी, आपका मतला है-
होश खोने की तलब है और मयखाना वहाँ।
है असम्भव आदतों को छोड़ दे पाना यहाँ।।
इसमें 'वहाँ' और 'यहाँ' पर काफिया निर्धारित हो रहा है. इसलिए इसे सुधार कर काफिया आना करने के लिए पहले मिसरे में भी 'वहाँ' को 'यहाँ' करना होगा-
होश खोने की तलब लेकिन न मयखाना यहाँ।
है असम्भव आदतों को छोड़ दे पाना यहाँ।।
वैसे 'छोड़ दे पाना' भी व्याकरणिक त्रुटी लग रही है किन्तु थोड़ा सशंकित हूँ. सादर
पंकज जी
सुन्दर प्रयास !
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